नयी दिल्ली , नवंबर 07 -- कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 'वंदे मातरम्' गीत को राष्ट्र की सामूहिक आत्मा जागृत करने वाला स्वतंत्रता संग्राम का उद्घोषक गीत बताते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) तथा भाजपा पर हमला किया और कहा कि राष्ट्रभक्ति का डंका पीटने वाले इस संगठन के लोगों ने अपनी शाखाओं में और बैठकों में इस गीत को कभी नहीं गया।

श्री खरगे ने वंदे मातरम गीत की 150वीं वर्षगांठ पर शुक्रवार को एक सन्देश में कहा कि इस राष्ट्रीय गीत ने हमारे राष्ट्र की सामूहिक आत्मा को जागृत किया और स्वतंत्रता संग्राम का उद्घोष बना रहा। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह गीत भारत माता अर्थात् भारत के लोगों की एकता और विविधता का प्रतीक है। कांग्रेस 'वंदे मातरम्' की गौरवशाली ध्वजवाहक रही है और 1896 में कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष रहमतुल्ला सयानी के नेतृत्व में, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने पहली बार सार्वजनिक रूप से 'वंदे मातरम्' का गायन किया था और तब इस गीत ने स्वतंत्रता आंदोलन में नयी ऊर्जा भर दी।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस ब्रिटिश साम्राज्य की 'फूट डालो और राज करो' नीति को समझती थी और उस समय अंग्रेजों की इस नीति के विरुद्ध 'वंदे मातरम्' अटूट शक्ति का गीत बनकर उभरा, जिसने सभी भारतीयों को भारत माता की भक्ति में शक्ति के रूप में एक सूत्र में बांध दिया था। फिर 1905 के बंगाल विभाजन से लेकर स्वतंत्रता सेनानियों के अंतिम सांसों तक 'वंदे मातरम्' की गूंज पूरे देश में सुनाई देने लगी। यह गीत लाला लाजपत राय के प्रकाशन का शीर्षक था, भीकाजी कामा के उस तिरंगे पर अंकित था जो उन्होंने जर्मनी में फहराया। यही गीत पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की क्रांति गीतांजलि में भी शामिल था। इसकी लोकप्रियता से भयभीत होकर ब्रिटिश सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया, क्योंकि वंदे मातरम उसे दौरान भारत की आज़ादी की धड़कन बन चुका था।

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि महात्मा गांधी ने भी इस गीत की प्रशंसा करते हुए 1915 में लिखा "वंदे मातरम् बंगाल में हिंदू-मुसलमान दोनों के बीच सबसे शक्तिशाली युद्धघोष बन गया था। यह साम्राज्यवाद विरोधी उद्घोष था। जब मैंने इसे पहली बार सुना, तो यह मुझे मंत्रमुग्ध कर गया और मैं इससे भारत के शुद्धतम राष्ट्रीय भाव को जोड़ने लगा।"फिर 1938 में पंडित नेहरू ने कहा, "पिछले 30 वर्षों से यह गीत सीधे भारतीय राष्ट्रवाद से जुड़ा है। ऐसे 'जनगीत' न तो बनाये जाते हैं और न ही किसी पर थोपे जा सकते हैं, वे स्वयं ऊंचाइयों तक पहुंचते हैं।" इसी तरह 1937 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में पुरुषोत्तमदास टंडन की अध्यक्षता में 'वंदे मातरम्' का गायन प्रारंभ हुआ। उसी वर्ष कांग्रेस ने पंडित नेहरू, मौलाना आज़ाद, सुभाषचंद्र बोस, रवीन्द्रनाथ ठाकुर और आचार्य नरेंद्र देव के नेतृत्व में इसे औपचारिक रूप से राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी, जो भारत की एकता में विविधता का प्रतीक बना।

उन्होंने वंदे मातरम के बहाने आरएसएस पर हमला किया और कहा, "दुर्भाग्य से आज जो संगठन राष्ट्रवाद के स्वयंभू ठेकेदार बने हुए हैं, आरएसएस और भाजपा उन्होंने कभी 'वंदे मातरम्' या हमारे राष्ट्रीय गान 'जन गण मन' का गायन अपनी शाखाओं या कार्यालयों में नहीं किया। वे आज भी 'नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे' गाते हैं, जो राष्ट्र की नहीं, संगठन की स्तुति है। 1925 में स्थापना के बाद से आरएसएस ने कभी 'वंदे मातरम्' को अपने साहित्य या पाठ्यक्रम में स्थान नहीं दिया। यह सर्वविदित है कि आरएसएस और संघ परिवार ने स्वतंत्रता आंदोलन में ब्रिटिशों का समर्थन किया, 52 वर्षों तक राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया, संविधान का अपमान किया और बापू और बाबा साहेब अंबेडकर के पुतले जलाये। सरदार पटेल के शब्दों में, वे गांधीजी की हत्या की साजिश में भी शामिल थे।"उन्होंने कहा कि कांग्रेस 'वंदे मातरम्' और 'जन गण मन' दोनों पर गर्व करती है। हर कांग्रेस अधिवेशन, सभा और कार्यक्रम की शुरुआत और समापन इन दोनों गीतों के साथ श्रद्धा और गर्व से होता है। उनका कहना था कि 1896 से लेकर आज तक हर कांग्रेस बैठक में,अधिवेशन में या ब्लॉक स्तर की सभा में, 'वंदे मातरम्' गर्व और देशभक्ति के साथ गाया जाता है।

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