नयी दिल्ली , अक्टूबर 07 -- मध्य प्रदेश और राजस्थान में कथित तौर पर 'दूषित कफ सिरप' सेवन से कई बच्चों की मौत के मामले की अदालत की निगरानी में स्वतंत्र जांच और देश के दवा सुरक्षा ढांचे में व्यापक बदलाव की मांग को लेकर उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गयी है।

अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा दायर याचिका में जांच के लिए शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय न्यायिक आयोग या विशेषज्ञ समिति गठित करने का आग्रह किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि यदि शीर्ष अदालत यह आयोग या समिति गठित करती है तो वह डायथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) और एथिलीन ग्लाइकॉल (ईजी) युक्त 'दूषित कफ सिरप' के निर्माण, परीक्षण और वितरण की गहन स्वतंत्र जांच करने में सक्षम होगी। याचिका में यह रेखांकित किया गया है कि ये औद्योगिक रसायन घातक विषाक्तता पैदा करने के लिए जाने जाते हैं।

याचिका के अनुसार, शिवपुरी (मध्य प्रदेश) और बाड़मेर (राजस्थान) में हाल ही में हुई घटनाओं ने गंभीर चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि कथित तौर पर तमिलनाडु की दवा कंपनी मेसर्स श्रीसन फार्मा प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्मित कोल्ड्रिफ कफ सिरप के सेवन से कई बच्चों की कथित तौर पर मौत हो गई।

स्थानीय औषधि नियंत्रण अधिकारियों के प्रारंभिक निष्कर्षों में संदिग्ध संकेत मिला है, जिससे भारत की दवा गुणवत्ता नियंत्रण और निर्यात निगरानी प्रणालियों में बार-बार होने वाली खामियों को लेकर देशव्यापी चिंता फिर से बढ़ गयी है।

याचिका में अनुरोध किया गया है कि आयोग या समिति में औषध विज्ञान, विष विज्ञान और औषधि विनियमन के विशेषज्ञ शामिल किए जाएं।

याचिका में विभिन्न राज्यों में विषाक्त कफ सिरप से हुई बच्चों की मौतों से संबंधित सभी लंबित मुकदमों और चल रही जांचों को केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) को हस्तांतरित करने का निर्देश देने की भी मांग की गयी है।

याचिकाकर्ता का सुझाव है कि राज्यों में निष्पक्षता, एकरूपता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सीबीआई जांच की निगरानी शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा की जाए।

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