सिरसा , नवंबर 02 -- हरियाणा के ग्रामीण इलाकों विशेष रूप से सिरसा-फतेहाबाद की बेटियों की उच्च शिक्षा की लड़ाई अब उच्च न्यायालय चंडीगढ़ तक पहुंच गई है। हरियाणा उच्च न्यायालय की संयुक्त पीठ ने सिरसा स्थित चौधरी देवी लाल विश्वविद्यालय (सीडीएलयू) को नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई 16 दिसंबर तक जवाब मांगा है कि विश्वविद्यालय ने अब तक यूजीसी पीएचडी अधिनियम, 2022 को लागू क्यों नहीं किया? वो नियम जो सैकड़ों छात्रों, विशेष रूप से महिला शोधार्थियों को अपने ही जिले में पीएचडी करने का अवसर प्रदान कर सकता है। यूजीसी के वर्ष 2022 के अधिनियमों के अनुसार, विश्वविद्यालयों से संबद्ध कॉलेजों के नियमित शिक्षकों, जिनके पास पीएचडी की डिग्री व आवश्यक शोध प्रकाशन हैं, को पीएचडी सुपरवाइजर बनने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन सीडीएलयू सिरसा ने इन नियमों को न अपनाकर कॉलेज शिक्षकों को सुपरवाइजऱ (शोध निदेशक) की मान्यता देने से इनकार कर दिया।

विश्वविद्यालय में कुल 29 विभाग है, जिसमें से केवल 16 विभागों में ही पीएचडी की सीटें निकाली गई हैं, इन 16 में से भी दो विभाग ऐसे हैं जिनमें भारतीय शोधार्थियों के लिए सीट जीरो है।

विश्वविद्यालय में शिक्षक स्टॉफ की कमी के चलते और यूजीसी के नियम न मानने के कारण विश्वविद्यालय में पीएचडी सीटों की संख्या आधी से भी कम रह गई। सीडीएलयू सिरसा की इस मनमानी नीति के चलते सिरसा और फतेहाबाद जैसे ग्रामीण जिलों के प्रतिभाशाली छात्रों और महिला शोधार्थियों के लिए गहरी निराशा का कारण बन गई है जो सीमित अवसरों के कारण अपनी पढ़ाई बीच में छोडऩे पर मजबूर हो गई हैं। जिसके चलते बेटियों के सपने टूटते नजर आ रहे हैं। सिरसा-फतेहाबाद और आस-पास के क्षेत्रों की कई योग्य छात्राएं, जो नेट या जेआरएफ जैसी प्रतिष्ठित राष्ट्रीय परीक्षाएं पास कर चुकी हैं, परंतु सीडीएलयू के मनमाने नियमों के चलते उन्हें दूसरे राज्यों की तरफ रूख करना पड़ा और कुछ ने पारिवारिक कारणों से पढ़ाई रोक दी, तो कुछ ने अपने सपनों को परिस्थितियों में दबा दिया, सिर्फ इसलिए कि उनके विश्वविद्यालय ने उन्हें मार्गदर्शन का अवसर नहीं दिया।

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