नैनीताल, सितंबर 27 -- उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक वन अधिकारी के स्थानांतरण और रुद्रप्रयाग जिले से सम्बद्धीकरण पर गहरी चिंता व्यक्त की है और सरकार को आईना दिखाते हुए कहा कि ऐसी कार्रवाइयां राजनेताओं की शिकायतों से प्रभावित नहीं होनी चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश जी. नरेन्दर और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने बुधवार को नंदप्रयाग (चमोली) के रेंज अधिकारी हेमंत बिष्ट द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह गंभीर टिप्पणी की। आदेश की प्रति आज मिली है।

याचिकाकर्ता ने 12 सितंबर को रुद्रप्रयाग में अपने स्थानांतरण और संबद्धीकरण आदेश को कलंकपूर्ण और मनमाना बताते हुए चुनौती दी है।

सुनवाई के दौरान वन सचिव सी. रविशंकर अदालत में वर्चुअल पेश हुए। पीठ के सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि हेमंत बिष्ट के खिलाफ कार्रवाई आगामी नंदा देवी यात्रा से संबंधित कार्यों में खामियों के कारण की गयी जबकि पूर्व ग्राम प्रधान की शिकायत महज आकस्मिक थी।

हालाँकि, अदालत ने अपने आदेश में चेतावनी दी कि अगर विभागीय कार्रवाई राजनीतिक शिकायतों के कारण हुई तो कार्यालय खाली रहेंगे और अधिकारी अपना समय राजनीतिक वर्ग के दरवाज़े पर बितायेंगे।

वन सचिव ने स्वीकार किया कि ऐसी स्थिति वांछनीय या स्वागत योग्य नहीं है और अदालत को आश्वासन दिया कि मामले की समीक्षा की जाएगी और एक रिपोर्ट पेश की जाएगी।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी और स्निग्धा तिवारी ने तर्क दिया कि अधिकारी को अपना पक्ष रखने का मौका दिए बिना ही दंडित किया गया तथा निहित स्वार्थ वाले लोग अपने प्रभाव का दुरुपयोग कर रहे हैं।

याचिका में कहा गया है कि इस वर्ष 27 अगस्त को जारी जाँच आदेश और उसके बाद जारी किया गया संबद्धीकरण का आदेश उनके पेशेवर रिकॉर्ड पर कलंक है।

याचिका में कहा गया है कि जांच समिति ने इस तरह से संबद्धीकरण की सिफारिश करने से पहले किसी भी स्तर पर याचिकाकर्ता के पक्ष को जानने की ज़हमत नहीं उठाई।

अदालत ने अगली सुनवाई के लिए आगामी सात अक्टूबर की तिथि तय कर दी है। साथ ही वन सचिव को अगली तिथि पर व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से छूट दे दी है।

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