नयी दिल्ली , नवंबर 14 -- उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को तमिलनाडु के पूर्व मंत्री वी. सेंथिल बालाजी द्वारा दायर एक याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें कथित 'नकदी के बदले नौकरी' घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में लगाई गई कुछ ज़मानत शर्तों में ढील देने की मांग की गई है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने श्री बालाजी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अधिवक्ता नरेंद्र हुड्डा की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से अधिवक्ता ज़ोहेब हुसैन पेश हुए, जबकि शिकायतकर्ता श्री वाई. बालाजी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन पेश हुए।
श्री कपिल सिब्बल ने ज़मानत की दो शर्तों में संशोधन की मांग की। उन्होंने कहा कि याचिका में 26 सितंबर, 2024 के ज़मानत आदेश की दो शर्तों में ढील देने की मांग की गई है, जिसके तहत श्री बालाजी को हर सोमवार और शुक्रवार को ईडी के चेन्नई कार्यालय में उपस्थित होने, और हर महीने के पहले शनिवार को अनुसूचित अपराधों में जांच अधिकारियों के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया था। उन्होंने तर्क दिया कि अनुसूचित अपराधों से संबंधित अदालतों और विशेष अदालत में उनकी नियमित और समय पर उपस्थिति की शर्त हटा दी जानी चाहिए।
ईडी के वकील ज़ोहेब हुसैन ने इस अनुरोध का विरोध करते हुए तर्क दिया कि पिछली पीठ ने जानबूझ कर कड़ी शर्तें लगाई थीं जिससे मुकदमे की प्रगति सुनिश्चित हुई।
श्री सिब्बल ने प्रतिवाद किया कि जांच पूरी हो चुकी है, शिकायत दर्ज है और बालाजी ने पूरा सहयोग किया है - ईडी के समक्ष 116 बार पेश हुए हैं। उन्होंने तर्क दिया कि संशोधन का विरोध सिर्फ विरोध के लिए है।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि अदालत इस समय कोई राय व्यक्त नहीं कर रही है। हालांकि, पीठ ने ईडी को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि क्या इस शर्त के तहत बालाजी की लगातार उपस्थिति आवश्यक है। न्यायमूर्ति कांत ने टिप्पणी की, "यह अनिवार्य रूप से न्यायिक कार्यवाही है। यह राजनीतिक रणक्षेत्र जैसा नहीं है।"26 सितंबर, 2024 को न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने 12 अगस्त, 2024 को फैसला सुरक्षित रखने के बाद, धन शोधन मामले में श्री बालाजी को ज़मानत दे दी।
अदालत ने कहा था कि कड़े ज़मानत प्रावधान मुकदमे में लंबी देरी के साथ-साथ नहीं चल सकते। भारत संघ बनाम के.ए. नजीब मामले में दिए गए उदाहरण का हवाला देते हुए, इसने इस बात पर ज़ोर दिया कि संवैधानिक अदालतों को अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार और त्वरित सुनवाई की रक्षा करनी चाहिए, जब यह स्पष्ट हो कि मुकदमा उचित अवधि के भीतर पूरा नहीं होगा।
देरी को आधार बनाकर ज़मानत देते हुए, अदालत ने यह भी दर्ज किया कि श्री बालाजी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है। इसमें कहा गया कि बालाजी के परिसर से ज़ब्त की गई एक पेन ड्राइव से छपी हुई फाइलों को अदालत द्वारा प्रमाणित किया गया था। उनके खाते में 1.34 करोड़ रुपये जमा होने की प्रथम दृष्टया सामग्री मौजूद थी। श्री बालाजी ने यह स्पष्टीकरण दिया था कि जमा राशि विधायक रूप में उनके वेतन और कृषि आय से प्राप्त हुई थी लेकिन इसके सबूत नहीं दिये गये थे।
तमिलनाडु के पूर्व परिवहन मंत्री और वर्तमान विधायक बालाजी पर 2011 और 2016 के बीच नौकरी के बदले पैसे का घोटाला करने का आरोप है। आरोप है कि उन्होंने अपने सहयोगियों और भाई के साथ मिलकर राज्य परिवहन विभाग में नियुक्तियों के बदले नौकरी के इच्छुक लोगों से पैसे वसूले।
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