भुवनेश्वर, सितंबर 25 -- भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की ऑडिट में ओडिशा की जनजातीय विकास निधि में एक बड़ी अनियमितता उजागर हुई है। ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया है कि सरकारी अधिकारियों ने अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये निर्धारित सार्वजनिक धन का दुरुपयोग किया है।

वर्ष 2018-19 से 2022-23 तक 11 एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसियों (आईटीडीए) को कवर करने वाले ऑडिट में गबन के मामले उजागर हुए। इसमें कनिष्ठ और सहायक अभियंताओं को सरकारी खातों से निजी लेन-देन करते पाया गया। इनमें एटीएम से नकद निकासी, बीमा प्रीमियम के लिए यूपीआई भुगतान और मोबाइल फोन रिचार्ज शामिल थे, जिनकी कुल कीमत 148.75 करोड़ रुपये थी। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये लेन-देन सरकारी धन के संदिग्ध दुरुपयोग का संकेत देते हैं।

रिपोर्ट में कई विसंगतियां हैं जिनमें गलत जगहों पर खर्चों से लेकर प्रक्रियागत उल्लंघन तक की बातें सामने आयीं। आईटीडीए के 11 ऑडिट से जानकारी मिलती है कि उपलब्ध 1,709.47 करोड़ रुपये में से केवल 70 प्रतिशत (1,190.44 करोड़ रुपये) ही खर्च किये गये, जो खराब वित्तीय प्रबंधन को दिखाता है।

ऑडिट में पाया गया कि आईटीडीए ने सालाना हिसाब-किताब तैयार ही नहीं किये, जो सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत जरूरी है। इसमें आंतरिक नियंत्रण में बड़ी विफलता पायी गयी क्योंकि विभागीय कार्यों के लिये राशि इंजीनियरों के अपने व्यक्तिगत बैंक खातों में भेजी गयी थी, जो कि सरकारी दिशानिर्देशों के अनुरूप नहीं है।

आईटीडीए द्वारा किये गये 325 कार्यों के परीक्षण में पाया गया कि माल और मजदूरी के लिये 3.23 करोड़ रुपये बिना रसीद के ही बांट दिये गये। इसके अलावा 22.78 करोड़ रुपये की लागत वाले 544 अन्य कार्यों में ऑडिट को 2,476 चालानों में अनियमितताएं मिलीं, जिनमें तारीख और संख्या गायब थी, नकली चालान और बिना जीएसटी से पंजीकृत संस्थाओं के बिल शामिल हैं।

ऑडिट में यह भी पाया गया कि नमूना-जाँच किये गये 544 कार्यों की अनुमानित लागत कार्यस्थल निरीक्षण या उचित डिजाइन बनाये बिना ही दिये गये। इसके अलावा सामग्रियों के उचित मूल्य निर्धारित करने के लिए कोई औपचारिक बाजार सर्वेक्षण भी नहीं किया गया था।

एक विशिष्ट मामले में आईटीडीए, परलाखेमुंडी के परियोजना प्रशासक ने 3.74 करोड़ रुपये मूल्य के संगीत वाद्ययंत्र और वेशभूषा खरीदकर अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया, जो 73.60 लाख रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति से कहीं अधिक था।

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