धमतरी , अक्टूबर 04 -- छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के सिहावा क्षेत्र का दशहरा देशभर की पारंपरिक दशहरा उत्सवों से अलग पहचान रखता है। यहां रावण का नहीं, बल्कि अहिरावण का वध किया जाता है - वो भी मिट्टी के नग्न पुतले का, जिसे मां शीतला माता के खड्ग से परंपरागत विधि-विधान के साथ मारा जाता है।
हर साल विजया दशमी के अगले दिन, एकादशी तिथि को यह अनोखा पर्व सोनामगर गांव में मनाया जाता है। इस दिन धमतरी सहित आसपास के जिलों से हजारों श्रद्धालु यहां जुटते हैं। सुबह से ही पूरे गांव में मेले जैसा माहौल रहता है।
इस अनोखी परंपरा की शुरुआत तब होती है जब गांव की महिलाओं के घरों से मिट्टी एकत्र की जाती है। इसी मिट्टी से एक विशेष कुम्हार परिवार, जो पीढ़ियों से यह जिम्मेदारी निभा रहा है, अहिरावण का पुतला बनाता है। फिर शीतला मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद मुख्य बैगा खड्ग लेकर सोनामगर पहुंचता है।
रास्ते में सिहावा थाना पड़ता है, जहां पुलिस कर्मी बंदूक से चांदमारी करते हैं - इसे शुभ संकेत माना जाता है। इसके बाद बैगा खड्ग लेकर अहिरावण के पुतले के चारों ओर नृत्य करता है और फिर उसका वध करता है। वध के बाद श्रद्धालु पुतले की मिट्टी को आशीर्वाद स्वरूप अपने घर ले जाते हैं।
इस पूरे आयोजन की खास बात यह है कि महिलाओं को कार्यक्रम स्थल में प्रवेश की अनुमति नहीं होती। मान्यता है कि युगों पहले वासना से ग्रसित अहिरावण नामक असुर का वध माता चण्डिका ने अपने खड्ग से किया था। तब से यह परंपरा आस्था और श्रद्धा के प्रतीक के रूप में निभाई जा रही है।
सदियों पुरानी इस परंपरा में आदिवासी संस्कृति और लोक आस्था का सुंदर संगम देखने को मिलता है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के प्रसार से अब इस उत्सव की प्रसिद्धि बढ़ी है, जिससे हर वर्ष यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफा हो रहा है।
भारत जैसे देश में जहां अद्भुत और अकल्पनीय परंपराओं की भरमार है, सिहावा का यह विलक्षण दशहरा भी उसी विरासत की एक जीवंत मिसाल है। इस अनोखी परंपरा को आज तक जीवित रखने का श्रेय स्थानीय आदिवासी समुदाय को जाता है।
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