नयी दिल्ली , अक्ट्रबर 09 -- केंद्रीय कानून एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने वीर सावरकर का व्यक्तित्व उन राष्ट्रीय विभूतियों में अग्रणी है जिनके विचारों से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए।

प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार और पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहूरकर तथा चिरायु पंडित द्वारा लिखित 'वीर सावरकर: द मैन हू कुड हैव प्रीवेंटेड पार्टिशन' के उर्द्र अनुवाद "वीर सावरकर और तक़सीम- ए-हिन्द का अलमिया" का गुरुवार को यहाँ लोकार्पण किया गया। जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति प्रोफ़ेसर मजहर आसिफ़ ने इस पुस्तक का उर्दू में अनुवाद किया है।

श्री मेघवाल ने कहा कि आज भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए, वीर सावरकर का व्यक्तित्व उन राष्ट्रीय विभूतियों में अग्रणी है जिनके विचारों से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। उर्दू की मीठी जुबान में यह कृति सावरकर के विचारों को देश और दुनिया के व्यापक जनसमुदाय तक पहुँचाएगी, जिससे हर भारतीय नागरिक के हृदय में राष्ट्र की अखंडता का विचार और मज़बूत होगा।

श्री माहूरकर ने कहा कि इतिहास में पहली बार, वीर सावरकर के बिना फिल्टर किए गए विचार-जो सभी धर्मों और जातियों के लिए समान अधिकारों की उनकी दृष्टि पर आधारित हैं-उर्दू की जुबान के माध्यम से मुस्लिम समुदाय तक पहुँच रहे हैं। सावरकर सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी नहीं, बल्कि समानता और सामाजिक न्याय के सबसे बड़े ध्वजवाहक थे। हमारी पुस्तक सशक्त प्रमाणों के साथ यह सिद्ध करती है कि सावरकर का हिंदू राष्ट्र' का विचार किसी प्रभुत्व या विभाजन के लिए नहीं, बल्कि प्रत्येक भारतीय नागरिक के लिए समान अधिकारों की स्थापना के लिए था। उन्होंने केवल तुष्टिकरण की राजनीति और कट्टरपंथी तत्वों का विरोध किया। उनका संघर्ष केवल न्याय और राष्ट्रीय अखंडता के लिए था। मेरा दृढ़ विश्वास है कि यह उर्दू संस्करण भारतीय मुसलमानों के एक बड़े वर्ग को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिन्हें अब तक तुष्टिकरण की राजनीति ने विभाजित रखा है। सावरकर जी के विरुद्ध वर्षों से रची जा रही दुष्प्रचार की साज़िश अब इस पुस्तक के माध्यम से ध्वस्त हो जाएगी।

प्रोफ़ेसर आसिफ ने कहा कि यह विमोचन इस बात का प्रतीक है कि वीर सावरकर की चेतना का पुनर्जागरण हो चुका है और उनके विचार अब भाषाई सीमाओं को तोड़कर 'राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने' के संकल्प को सिद्ध करेंगे।

राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद के निदेशक डॉ. शम्स इक़बाल ने कहा कि इस पुस्तक का उर्दू में प्रकाशन अत्यंत आवश्यक था। यह उर्दू अनुवाद समाज में वीर सावरकर के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर करने में अत्यंत सहायक सिद्ध होगा और नई पीढ़ी को इतिहास के निष्पक्ष अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराने का आरंभ मानी जा सकती है।

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