जयपुर , नवम्बर 03 -- राजस्थान में जयपुर के राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा भारत में आत्मनिर्भरता एवं सततता को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से "वनस्पति तेल आपूर्ति श्रृंखला के हितधारकों के साथ संवाद एवं परामर्श" विषय पर एक दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया गया। आधिकारिक सूत्रों ने सोमवार को बताया कि यह कार्यक्रम सॉलिडेरिडाड रीजनल एक्सपर्टीज सेंटर एवं स्टार सोसायटी, जयपुर द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और भारतीय सरसों अनुसंधान संस्थान (आईआईआरएमआर), भरतपुर और श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर (जयपुर) के सहयोग से आयोजित किया गया।

कार्यक्रम का उद्देश्य शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं, विस्तार अधिकारियों, उद्योग प्रतिनिधियों तथा कृषकों को एक साझा मंच पर लाकर भारत में वनस्पति तेल आपूर्ति श्रृंखला को सशक्त, आत्मनिर्भर एवं सतत बनाने के उपायों पर विचार-विमर्श करना था।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रो. पुष्पेन्द्र सिंह चौहान ने उद्घाटन संबोधन में कहा कि भारत वर्तमान में अपनी वनस्पति तेल की लगभग 60 प्रतिशत आवश्यकता आयात से पूरी करता है, जो आत्मनिर्भर भारत के लिए चुनौती है। उन्होंने वैज्ञानिकों, उद्योगों एवं कृषकों से मिलकर तकनीकी नवाचार, उन्नत कृषि प्रबंधन एवं मूल्य श्रृंखला सुदृढ़ीकरण की दिशा में सामूहिक प्रयास करने के साथ ही जैविक तिलहन उत्पादन, ग्राम स्तर पर प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना एवं "वोकल फॉर लोकल" दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. एन. के. गुप्ता के स्वागत उद्बोधन से हुआ। डॉ गुप्ता ने राजसान कृषि अनुसंधान संस्थान (आरएआरआई) द्वारा विकसित 150 से अधिक उच्च उत्पादकता वाली फसल किस्मों का उल्लेख करते हुए तिलहन फसलों की उत्पादकता एवं लाभप्रदता बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे देश की तेल आयात निर्भरता घटाई जा सके। डॉ. वी. वी. सिंह ने सरसों एवं रेपसीड की उच्च उत्पादकता वाली किस्मों के विकास एवं तकनीकी हस्तांतरण में संस्थान की भूमिका पर प्रकाश डाला।

डॉ. आर. के. माथुर ने किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि एफपीओ किसानों को सामूहिक शक्ति प्रदान करके उन्हें सूचना, तकनीक एवं बाजार तक बेहतर पहुँच दिलाते हैं।

कार्यक्रम के दौरान विभिन्न सत्रों में वैज्ञानिकों, उद्योग प्रतिनिधियों, विस्तार अधिकारियों एवं कृषकों ने वनस्पति तेल आपूर्ति श्रृंखला की उत्पादकता, लाभप्रदता एवं सततता में सुधार हेतु अपने विचार प्रस्तुत किए तथा व्यावहारिक रणनीतियाँ सुझाईं।

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