चेन्नई , अक्टूबर 16 -- तमिलनाडु मुख्यमंत्री एम.के.स्टालिन ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से आग्रह किया कि वह श्रीलंका की प्रधानमंत्री हरिनी अमरसूर्या की भारत यात्रा के दौरान उनके समक्ष तमिलनाडु के मछुआरों की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को उठायें, जिनमें कच्चातीवू की वापसी, श्रीलंका की नौसेना के हमले और गिरफ्तारी तथा पाल्क खाड़ी में मछली पकड़ने के लिये मछुआरों के पारंपरिक अधिकारों को सुनिश्चित करना शामिल है।
श्री मोदी को लिखे अर्ध सरकारी पत्र में श्री स्टालिन ने कहा कि श्रीलंकाई प्रधानमंत्री गुरुवार से नयी दिल्ली में तीन दिवसीय दौरे पर हैं। उन्होंने कहा कि उनका यह दौरा पाल्क खाड़ी में मछली पकड़ने के जलक्षेत्र में भारतीय मछुआरों के सामने आने वाली लगातार चुनौतियों का समाधान करने का एक अच्छा अवसर है।
उन्होंने श्री मोदी से आग्रह किया कि प्रधानमंत्री अमरसूर्या के दौरे पर यह मुद्दे जरूर उठायें।
तमिलनाडु के मछली पकड़ने वाले समुदाय को लगातार श्री लंका की नौसेना द्वारा परेशान, हमला और गिरफ्तार करने जैसी चुनौतियों के कारण भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वर्ष 2021 से अब तक 106 अलग-अलग घटनाओं में 1482 मछुआरों को गिरफ्तार किया जा चुका है और 198 मछली पकड़ने वाली नौकाओं को जब्त किया गया है, जिससे इन समुदायों को संकट और आर्थिक नुकसान हुआ है।
श्री स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु सरकार ने राजनयिक माध्यमों से इन मुद्दों के समाधान के लिए केंद्र सरकार से लगातार हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने कहा, "इस संबंध में, मैंने आपके कार्यालय के समक्ष ग्यारह मौकों पर यह मामला उठाया है और विदेश मंत्री को 72 बार अभ्यावेदन दिया है।" उन्होंने कहा, "मैं अनुरोध करता हूं कि यात्रा के दौरान श्रीलंका के प्रधानमंत्री के साथ पांच महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करें, जिसमें कच्चाथीवु द्वीप को वापस प्राप्त करना, सभी गिरफ्तार मछुआरों और उनकी नौकाओं की तत्काल रिहाई, समुद्र में हिंसा और चोरी की घटनाओं का समाधान, जब्त मछली पकड़ने वाली नौकाओं के राष्ट्रीयकरण का प्रभाव और मत्स्य पालन पर संयुक्त कार्य समूह (जेडब्ल्यूजी) का पुनरोद्धार शामिल है।
कच्चातीवू द्वीप को पुनः प्राप्त करने के बारे में मुख्यमंत्री ने कहा कि तमिलनाडु के मछुआरे पारंपरिक रूप से कच्चातीवू के आसपास के जलक्षेत्र में मछली पकड़ते रहे हैं। गौरतलब है कि कच्चातीवू द्वीप को 1974 में एक समझौते के तहत श्रीलंका को सौंप दिया गया था, जो ऐतिहासिक रूप से भारत का हिस्सा था।
केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की सहमति लिये बिना तथा उचित प्रक्रियाओं का पालन किये बिना ही इस द्वीप को श्रीलंका को दे दिया, इस निर्णय का तमिलनाडु विधान सभा द्वारा 1974 से लगातार विरोध किया जा रहा है।
श्री स्टालिन ने कहा, "फलस्वरूप हमारे मछुआरों को अब अपने पारंपरिक मछली पकड़ने के क्षेत्रों तक पहुंच पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ रहा है और अतिक्रमण के आरोप में उन्हें अक्सर परेशान किया जा रहा है। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया इस अवसर का उपयोग कच्चाथीवु द्वीप को पुनः प्राप्त करने तथा पाल्क की खाड़ी क्षेत्र में हमारे मछुआरों के पारंपरिक मछली पकड़ने के अधिकारों की बहाली पर बातचीत शुरू करने के लिये करें।"उन्होंने कहा कि मछुआरा समुदाय के सामने लंबे समय से चली आ रही और पीड़ादायक समस्याओं के निवारण के लिये यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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