अमृतसर , अक्टूबर 09 -- विश्वप्रसिद्ध राम नगरी अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष तथा मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के प्रमुख संत महंत नृत्य गोपाल दास के शिष्य, रामानंदी वैष्णव संप्रदाय के संत महंत आशीष दास गुरुवार को अमृतसर पहुंचे।
उन्होंने समाजसेवी संस्था पी.सी.टी. ह्यूमैनिटी के संस्थापक डॉ. जोगिंदर सिंह सलारिया तथा भारतीय जनता पार्टी पंजाब के प्रवक्ता और सिख चिंतक प्रो. सरचंद सिंह ख्याला के निवास स्थान पर पहुंचकर धार्मिक चिंतन, राष्ट्रीय एकता और हिंदू-सिख भाईचारे की साझा भावना पर विस्तृत चर्चा की।
महंत आशीष दास ने गुरु परंपरा की महिमा का गुणगान करते हुए "हिंद की चादर" श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की शहादत को नमन किया। उन्होंने कहा कि सिख धर्म और सनातन परंपरा दोनों की जड़ें मानवता, सेवा और सत्य की मूल मर्यादाओं पर आधारित हैं। अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण केवल सनातन संस्कृति का पुनर्जागरण ही नहीं, बल्कि राष्ट्र के साझा सांस्कृतिक अस्तित्व को नयी ऊर्जा देने वाला युग चेतना का ऐतिहासिक कदम है। उन्होंने कहा कि श्रीराम मंदिर आज सामाजिक सद्भाव, राष्ट्रीय एकता और अखंडता का प्रतीक बन चुका है। देशभर में दिखाई दे रहा व्यापक जनजागरण इसी सांस्कृतिक चेतना का परिणाम है।
महंत ने पंजाब की धरती पर मिले प्यार, सम्मान और आत्मीयता के लिए गहरा आभार व्यक्त करते हुए कहा, "पंजाब की मिट्टी केवल खुशबू ही नहीं बिखेरती, बल्कि इसमें श्रद्धा, सम्मान और साझा आध्यात्मिकता की महक भी समायी हुई है। यहां मुझे अतिथि नहीं, बल्कि परिवार का सदस्य समझकर जो स्नेह मिला, वह अमूल्य और अविस्मरणीय है।"उन्होंने कहा कि सिख और सनातन वैष्णव परंपरायें दोनों ही सेवा, सत्य और श्रद्धा के सिद्धांतों पर टिकी हैं। गुरु नानक देव जी के "सर्बत दा भला" (सभी का कल्याण) के संदेश ने यह सिद्ध कर दिया कि धर्म का उद्देश्य जोड़ना है, तोड़ना नहीं। उन्होंने कहा कि सिख और हिंदू समुदायों को विभाजित करने के किसी भी प्रयास का राष्ट्रीय एकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इसलिए इसका दृढ़ता से विरोध होना चाहिए।
महंत ने कहा कि "गुरु परंपरा और सिखों का बलिदानमय इतिहास मेरे मन को सत्य और मानवता की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। यह इतिहास केवल पंजाब की शान नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतीय संस्कृति की आभा है।"उन्होंने कहा, "जब मैंने सिख संगतों से भेंट की, तो अनुभव हुआ कि हमारी परंपरायें रूप में भिन्न हैं, पर आत्मा एक ही है - जो सत्य, प्रेम और सेवा में विश्वास रखने वाली है।"महंत आशीष दास ने प्रो. सरचंद सिंह ख्याला और डॉ. सलारिया के आतिथ्य और आत्मीय सहयोग के लिए आभार व्यक्त करते हुए कहा कि वे शीघ्र ही पुनः पंजाब आयेंगे, ताकि आध्यात्मिक और सामाजिक सहयोग के माध्यम से भाईचारे के संबंधों को और सुदृढ़ किया जा सके।
इस अवसर पर डॉ. जोगिंदर सिंह सलारिया ने कहा कि पी.सी.टी. ह्यूमैनिटी बिना भेदभाव मानव सेवा के लिए समर्पित संस्था है, जो साझा मानवीय और सांस्कृतिक मूल्यों को सशक्त बनाने के लिए निरंतर कार्यरत है। उन्होंने महंत आशीष दास की हिंदू-सिख एकता को मजबूत करने में निभायी जा रही भूमिका की सराहना की।
प्रो. ख्याला, जो दमदमी टकसाल के पूर्व मीडिया प्रवक्ता भी रह चुके हैं, ने कहा कि सिख और सनातन धर्म दोनों ही भारतीय अध्यात्मवाद के अविनाशी अंग हैं। सत्य की खोज के मार्ग भले ही अलग हों, लेकिन मंज़िल एक ही है। उन्होंने कहा कि अयोध्या और अमृतसर दोनों भारत की आध्यात्मिक धरोहर के केंद्र हैं। पंजाब की धरती सदैव साझेपन, वीरता, सहिष्णुता और धार्मिक व्यापकता की प्रतीक रही है।
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