, Dec. 17 -- एनसीपी (शरद पवार गुट) के नीलेश ज्ञानदेव लंके ने कहा कि सरकार काम से ज्यादा नाम पर ध्यान देने में विश्वास करती है। इस विधेयक से महात्मा गांधी का नाम हटाया जा रहा है। इसमे 125 दिन के रोजगार का वादा किया जा रहा है जबकि एक सौ दिन में पचास दिन का भी काम ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है। देश में महंगाई बढ रही है और असंगठित क्षेत्र के कामगार जीने के लिए परेशान है। इसमें कहा गया है कि युवाओं को नौकरियां मिलेगी जो हास्यास्पद है। यह विधयेक बिना ईंजन रेल गाड़ी है। सरकार युवाओं के भविष्य से खेल रही है जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इस विधेयक में निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने का लक्ष्य है। असंगठित क्षेत्र के लोगों के लिए इस विधेयक में कुछ नहीं है। आम आदमी के लिए अन्याय करने वाला है।
शिवसेना (शिंदे) के भुमारे संदीपनराव आसामराम ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह विकसित भारत के सपने को पूरा करने वाला है। सरकार ने अब एक सौ दिन के बदले 125 दिन का काम देने की गारंटी दी है जिसमें लोगों की आर्थिक स्थति अच्छी होगी। एनडीए सरकार की योजनाओं के केंद्र में मजदूर है औऱ उसके हितों को ध्यान में रखकर नीतियां बनायी जा रही है। सरकार की नीतियों से किसानों का सीधा लाभ मिल रहा है। सरकार द्वारा 25 दिन काम अधिक करने से ग्रामीण इलाकों से गरीब कम करने में मदद मिलेगी।
कांग्रेस के काडिकुन्निल सुरेश ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि हमें मनरेगा के इतिहास को भी ध्यान रखना चाहिए। मनरेगा कांग्रेस की दूरदर्शिता का परिणाम था। यूपीए सरकार ने पहली बार विचार दिया था कि रोजगार लोगों का अधिकार है और इसी के तहत मनरेगा लाया गया था। मानव के विकास के लिए और असमानता घटाने के लिए यूपीए ने दस साल कई काम किये। मनरेगा से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता था लेकिन इस विधेयक से मनरेगा को खत्म किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मजदूरों को ईएसआई के अंतर्गत लाना चाहिए और मजदूरों को पीएफ उपलब्ध कराया जाये। इस सदन को इस विधेयक को स्वीकार नहीं करना चाहिए।
भाजपा के गणेश सिंह ने कहा कि यह बहुत ही सराहनीय कदम है। यह विधेयक मनरेगा में संशोधन करने के लिए लाया गया है। कांग्रेस जब मनरेगा कानून लेकर आयी थी तब वह उस समय के लिए अनुकूल था लेकिन इसमें सुधार की अब आवश्यकता है। इस योजना को पीएम गतिशक्ति के जोड़ने का काम किया गया है वह प्रशंसनीय है। मनरेगा को लेकर तमाम तरह की शिकायतें आ रही थी जिससे मजदूरों की रूचि मनरेगा से हटती चली गयी। इसलिए पुराने कानूनों में बदलाव की आवश्यकता है। इस विधेयक से रोजगार के अवसर बढेंगे। इस विधेयक के माध्यम से ग्रामीण सड़कों को बनाने के साथ साथ स्वच्छता पर काम होगा। पहले एक सौ दिनों में काम मिलता था अब 125 दिनों का काम मिलेगा। इसमें बेरोजगारी भत्ते का भी प्रावधान किया गया है।
समाजवादी पार्टी के सनातन पांडे ने कहा कि नाम बदलने से गरीबों और मजदूरों के हालात नहीं बदलने वाला है। इसने यह साबित कर दिया कि सत्तापक्ष के लोग महात्मा गांधी से नफरत करते हैं। महात्मा गांधी देशवासियों के रगों में हैं इसे भुलाया नहीं जा सकता है। सरकार कितनी संवेदनशील है इससे पूरा देश भलिभांति परिचित है। मनरेगा ने गांव के मजदूरों की स्थिति को बेहतर करने का काम किया है।
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की वीना देवी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को पूरा करने के लिए बड़ा कदम उठाया गया है। बीस साल पहले मनरेगा लाया गया था तब देश के हालत अलग थे लेकिन अब ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल गयी है। आज गांवों को चौबीस घंटे बिजली आ रही है। सड़कें बनने से गांव की शहर से दूरी कम हुई है। इस विधेयक से गरीबों के जीवन में खुशहाली लायेगी।
राष्ट्रीय जनता दल के अभय कुमार सिन्हा ने कहा कि यह विधेयक ग्रामीण रोजगार पर सीधा हमला है। इसमें रोजगार गारंटी को कमजोर कर भगवान राम के नाम पर इसे ढकने का काम किया जा रहा है। अब केंद्र मनमाने ढंग से फैसले करेगी। ग्राम सभा की शक्तियां छीनने का काम किया गया है। देश में लगातार महंगाई बढ रही है लेकिन गरीब मजदूरों का मानदेय बढाने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। आप वास्तविक में स्वराज बनाना चाहते हैं तो बापू का नाम बदलकर नहीं बल्कि मजदूरों को छह महीने का रोजगार गारंटी देकर करें।
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