, Dec. 17 -- डीएमके के थंगा तमिलसेल्वन ने कहा कि भाजपा सरकार का मकसद कांग्रेस के समय लायी गई योजनाओं के नाम बदलना रह गया है। मनरेगा को लेकर भाजपा सरकार शुरु से इसके खिलाफ रही है और इसी का परिणाम है कि योजना के तहत दी जाने वाली निधि में लगातार कटौती की जाती रही है। उनका कहना था कि यह नहीं भूलना चाहिए कि कोविड के समय इस योजना के कारण लोगों की बहुत मदद हुई थी।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के अमरा राम ने कहा कि मनरेगा को सरकार पूरी तरह से ही खत्म कर रही है। इस सरकार ने मनरेगा के तहत महज पांच प्रतिशत लोगों को सौ दिन का काम दिया है। इस विधेयक के जरिए भाजपा सरकार 125 दिन का काम देने का ढकोसला कर रही है जबकि योजना का बजट लगातार कम किया जा रहा है। उन्होंने इसे भाजपा की गरीब विरोधी मानसिकता का परिणाम बताया और कहा कि विधेयक से सरकार अधिकार छीनने का काम कर रही है और इसका पहला उदाहरण यही है कि सरकार इस योजना के तहत 60 अनुपात 40 के फार्मूले के तहत चल रही है। उनका कहना था कि विधेयक को वापस लेना चाहिए या प्रवर समिति को भेजा जाना चाहिए।
कांग्रेस के सप्तगिरि शंकर उलाका ने कहा कि इस सरकार का प्रयास लगातार मनरेगा को कम करने का रहा है। मनरेगा का बजट मोदी सरकार लगातार कम करती रही है और धीरे धीरे इसका बजट घटाने के लिए काम करती रही है। भाजपा सरकार में मनरेगा की राशि में लगातार कई तरह की कटौती की गई है। मनरेगा में 15 दिन का काम नहीं मिलने पर भत्ता दिए जाने का प्रावधान था लेकिन मोदी सरकार ने इस प्रावधान को नकार दिया और कभी इसका भुगतान नहीं किया।
भाजपा के पी पी चौधरी ने कहा कि मोदी सरकार आने से पहले मनरेगा के लिए जो धन दिया गया उसमें से कई जगह पैसा ही खर्च नहीं हुआ। उनका कहना था कि मनरेगा से बिचौलियों, नौकरशाहों और नेताओं ने खूब पैसा बनाया है और इस पर सरकार ने तब 17 लाख करोड़ रुपए खर्च किये लेकिन गरीबों के पास इस राशि से पांच गुना से कम पैसा पहुंचा। उनका कहना था कि यह राशि कहां गई इसका कहीं पता नहीं चलता है लेकिन मोदी सरकार आने के बाद मनरेगा में पारदर्शिता अपनाई गई और 13 करोड़ लोगों को इसमें शामिल कर इसका वितरण सीधे खाते में भुगतान के जरिए किया गया। मोदी सरकार गांधी जी की भावनाओं और उनके आदर्शों को साकार कर रही है और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में देश को आगे बढ़ाने का काम कर रही है।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नवासकनी के ने कहा कि मनरेगा के नये विधेयक के माध्यम से राज्यों पर बोझ डाला जा रहा है और इसके तहत राज्य 40 प्रतिशत और केंद्र 60 प्रतिशत देगा लेकिन अब तक ऐसा नहीं था और केंद्र ही इस योजना का पैसा देता रहा है। आवंटन के पैसे के लिए राज्यों पर बोझ डालकर सरकार ने अन्याय किया है और उन्हें लगता है कि यहां पारदर्शिता नहीं है और भाजपा शासित राज्यों को ज्यादा पैसा आवंटित किया जा सकता है। सरकार का काम सिर्फ योजनाओं का नाम बदलना रह गया है और अब तो महात्मा गांधी के नाम को तक बदला गया है।
सपा के हरेंद्र सिहं मलिक ने कहा कि 11 साल तक मनरेगा का नाम गांधी के नाम से ही चलता है लेकिन अचानक सरकार ने इस विधेयक का नाम बदल दिया है और भाजपा ने गरीब विरोधी अपने चेहरे का इस कानून को बदलने के रूप में अपना परिचय दे दिया है। उनका कहना था कि देश में सब्सिडी घट रही है, महंगाई लगातार बढ रही है और रोजगार घट रहा है फिर भी देश को विकासित भारत बताया जा रहा है। मोदी सरकार सिर्फ पुरानी योजनाओं का नाम बदल रही है और समाज के वंचित वर्गों पर इनका ध्यान नहीं है। सिर्फ प्रचार किया जा रहा है और जमीनी हकीकत इसके विपरीत है।
कांग्रेस की ज्योत्सना चरणदास महंत ने कहा कि राम कण कण में है और सबके दाता राम ही हैं लेकिन भाजपा रामजी का नाम लेकर राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास कर रहा है। इस सरकार का काम सिर्फ राम के नाम की माला जपना है और वह मजदूरों तथा गरीबों के विरोध में का म कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार विकसित भारत की बात करती है लेकिन असलियत यह है कि सरकार राज्यों की कमर तोड़ रही है और इस योजना के तहत राज्यों पर आर्थिक बोझ बढ़ाया गया है। उनका कहना था कि सरकार को राम के नाम का इस्तेमाल राजनीति के लिए नहीं करना चाहिए और गरीबों की थाली तथा राज्यों के खजाने को बचाने का काम कीजिए।
भाजपा के माधवनेनी रघुनंदन राव ने कहा कि मोदी सरकार में देश में गरीबी का आंकड़ा घटा है और सरकार गरीबों के हित के लिए लगातार काम कर रही है। उन्होंने कहा कि गांधीजी ने देश में रामराज की कल्पना की थी और मोदी सरकार यदि रामजी के नाम पर विधेयक ला रही है तो इसमें दिक्कत क्यों हो रही है। उन्होंने कहा कि मनरेगा श्रमिकों की संख्या मोदी सरकार में बढी है और इसके लिए केंद्र से दी गयी राशि भी बढी है और मनरेगा योजना को हमेशा मजबूत करने का मोदी सरकार प्रयास करती रही है।
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