अमृतसर , अक्टूबर 04 -- पंजाब भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता प्रो. सरचंद सिंह ख्याला ने राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम समुदाय को दिये गये अल्पसंख्यक दर्जे की संवैधानिक समीक्षा का आह्वान किया है और आग्रह किया है कि अल्पसंख्यक मान्यता के मानदंड राष्ट्रीय स्तर के बजाय राज्यवार निर्धारित किये जायें।

प्रो ख्याला ने कहा कि भारत में मुस्लिम समुदाय आज एक प्रभावशाली जनसांख्यिकीय और राजनीतिक स्थिति का आनंद लेता है और अब उसे अल्पसंख्यक नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि जहां उचित हो, आर्थिक आधार पर आरक्षण पर विचार किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि भारत में मुसलमानों की जनसंख्या अब 20 करोड़ से अधिक है, जो देश की कुल जनसंख्या का लगभग 16-17 प्रतिशत है। यह आंकड़ा केवल संख्या नहीं बल्कि उनके सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव की तस्वीर पेश करता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, असम और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में मुसलमान निर्णायक स्थिति में हैं। ऐसे में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक दर्जे के विशेष अधिकार प्रदान करना सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों के विपरीत है।

प्रो ख्याला ने प्रधानमंत्री को प्रस्तुत आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि 1950 में भारत में मुसलमानों की जनसंख्या 9.84 प्रतिशत थी, जो 2015 में बढ़कर 14.09 प्रतिशत हो गयी। इस अवधि में उनका हिस्सा 43.15 प्रतिशत की दर से बढ़ा, जबकि हिंदू जनसंख्या 84.68 प्रतिशत से घटकर 78.06 प्रतिशत रह गयी। सरकार ने 2023 में लोकसभा को बताया कि देश में मुसलमानों की आबादी 19.75 करोड़ से अधिक है, जो अब निश्चित रूप से 20 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है। इसके मुकाबले देश में सिख केवल 1.85 प्रतिशत, ईसाई 2.36 प्रतिशत, बौद्ध 0.81 प्रतिशत, जैन 0.36 प्रतिशत और पारसी मात्र 0.004 प्रतिशत हैं। उन्होंने कहा कि 2005-06 से 2019-21 तक मुसलमानों की कुल प्रजनन दर में भले ही एक प्रतिशत की गिरावट आई हो, पर उनकी जनसंख्या में तेज़ी से वृद्धि जारी है, जिसका मुख्य कारण अवैध प्रवासन, शरणार्थियों का प्रवेश और धार्मिक परिवर्तन है। यह बदलता जनसांख्यिकीय संतुलन राष्ट्रीय एकता के लिए चिंताजनक संकेत है।

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