, Dec. 8 -- भाजपा के संबित पात्रा ने कहा कि पंडित नेहरू वंदे मातरम के पक्ष में नहीं थे और वह कहते थे कि वंदे मातरम आधुनिक भारत के अनुकूल नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि गांधी जी भी इसके पक्ष में नहीं थे। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की सीमाएं नहीं होती है जैसे गंगा जब सागर में मिलती है तो वहां गंगा नहीं गंगा सागर हो जाती है। आनंद मठ में लिखे मूल पाठ के एक अंश को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें लिखा है कि हमारे लिए मातृ भूमि ही सब कुछ है और वंदे मातरम मातृ भूमि की वंदना है। उन्होंने कहा कि वंदेमातरम एक शब्द नहीं यह एक मंत्र है जिसमें देशभक्ति का अंबार है।
नेशनल कांफ्रेंस के आगा सैयद रुहुल्लह मेहदी ने कहा कि मजहब या धर्म आंतरिक पहचान है और जब वंदे मातरम को जबरन गाने के लिए कहा जाता है तो यह उचित नहीं है। आजादी हमे धार्मिक आधार भी मिली है और इस आजादी को छीना नहीं जा सकता है।
तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने कहा कि वंदे मातरम महज एक गीत नहीं था बल्कि यह लाखों लोगों के जीवन की धड़कन थी। इस गीत के जरिए लोगों की भावनाएं देशभक्ति से भर जाती थीं। उन्होंने कहा कि यह राजनीति का प्रतीक बन गया था लेकिन वंदे मातरम राजनीति से बहुत ऊपर रहा है।
कांग्रेस के डॉ प्रशांत यादवराव पडोले ने कहा कि वंदे मातरम की प्रासंगिकता आज डेढ सौ साल और अधिक बढ गई है। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम धरती माता का ही स्मरण नहीं कराता है बल्कि उस पर जीने वालों को जीवन देती है इसलिए अन्नदाता को उसका हक मिलना चाहिए। वंदे मातरम तब ही सार्थक है जब देश की जनता को सुख मिले देश में कानून का राज हो और देश का किसान, दलित, महिलाएं सबको सम्मान मिले।
राष्ट्रीय लोक दल के वदे मातरम मात्र अभिवादन नहीं बल्कि हमारी पहचान है और हमारी अस्मिता बना हुआ है। यह गीत देश की समृद्धि को सजीव करता है और विविधताओं से भरे राष्ट्र की एकता और हमारी जीवंता का अनूठा प्रतीक है। हमें अपने बच्चों को इससे अवगत कराना चाहिए और मातृभूमि के प्रति समर्पण की प्रेररण को अगली पीढी को देना चाहिए।
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