, Dec. 8 -- रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चर्चा में हिस्सा लेते हए कहा कि बंकिमचंद्र चटर्जी ने कहा था कि यह गीत समग्रता का गीत है और इसमें कहीं सांप्रदायिकता हो ही नहीं सकती है। यह धरती के पोषण का गीत है और धरती हम सबकी माता है। इसमें कहीं भी हिंदू मुस्लिम की बात करना औचित्यहीन है। यह गीत देश की अनेकता में एकता का सबसे बड़ा प्रतीक है। कुछ लोगों ने इस गीत का सही अर्थ नहीं समझा इसलिए सबको इसको समझने की जरूरत है।
श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इस गीत से हर भारतीय की आशा एक साथ गूंज उठी थी। बंकिम बाबू खुद मूर्ति पूजा के समर्थक नहीं थे और यह बात 1874 में लिखे उनके एक लेख से साबित होती है। उन्होंने कहा, ''वंदे मातरम सिर्फ हमारा नहीं पूरे देश का गौरव है।'' कांग्रेस पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि पंडित नेहरू के समय में संविधान में संशोधन किया गया और उसी समय देश के संविधान तथा उसके मूल्यों के साथ अन्याय शुरु हो गया था और उस समय ही कानून को बदलने का काम शुरु हो गया था। कांग्रेस के शासन में संविधान को कमजोर करने की पंरपरा उसके काम का चरित्र रहा है।
उन्होंने वंदे मातरम को लेकर गांधीजी को उद्धृत करते हुए कहा कि इस गीत में असाधारण गुण है। वंदे मातरम् को सांप्रदायिक बताना एक बहाना था लेकिन उनकी असली मंशा इसका विरोध करना था। कुछ दलों के नेताओं को चुनावी हार का सामना करना पड़ता है, तो परिणाम को स्वीकार करने के बजाय, वे पूरी प्रक्रिया को बाधित करने और अराजकता पैदा करने का प्रयास करते हैं। यह संवैधानिक संस्थाओं के प्रति गहरा अनादर है। यही लोग अब एक साजिश के तहत लगातार चुनाव आयोग पर हमला कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि संविधान सभा ने ही इस गीत की ट्यून तैयार की थी। बड़ी बात यह थी कि संविधान सभा में महज 30 मिनट में इसको राष्ट्रीय गीत नाम देने पर चर्चा समाप्त हो गयी थी क्योंकि सभी लोग वंदे मातरम को सम्मान देते थे। उनका मतलब यह नहीं था कि उनके पास समय की कमी थी बल्कि यह स्वाभाविक रूप से राष्ट्र गीत ही था और सभी इसे राष्ट्रगीत ही मानते थे इसलिए इस पर अनावश्यक रूप से संविधान सभा में चर्चा को अनावश्यक ही माना जा रहा था क्योंकि यह देश की पहचान थी, देश का गीत था, राष्ट्र का राष्ट्रीय गीत था। वंदे मातरम को वीरता का जयघोष बताते हुए उन्होंने कहा कि यह हमारे गौरव का घोष और हमारे स्वर्णिम भविष्य का प्रतीक, धर्म की रक्षा का संदेश, पवित्रता का बंधन, भारतीयता, राष्ट्रीयता का सशक्त हस्ताक्षर भी है।
सपा के अवधेश प्रसाद ने कहा कि वंदे मातरम देश की एकता, अखंडता और आपसी भाईचारे का प्रतीक है लेकिन सत्ता पक्ष इस पर विवाद पैदा करने में लगा रहता है। उन्होंने कहा कि सरकार का आचरण राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् की पंक्तियों के एकदम विपरीत है। उनका कहना था, ''वंदे मातरम् पर कुछ समय की चर्चा की बजाय इस पर विशेष सत्र बुलाया जात तो हम इस पर दस दिन तक चर्चा कर सकते थे। वंदे मातरम् शहीदों का गीत है और उन्हीं के कारण यह देश बना है।''तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने कहा कि जब वंदे मातरम् लिखा गया था तो उस समय न आरएसएस था और ना ही भाजपा का जन्म हुआ था। उन्होंने कहा कि जो लोग कहते हैं कि भारत में यदि रहना है तो वंदे मातरम कहना होगा, उनमें से अधिकतर लोगों को वंदे मातरम नहीं आता है जबकि नारा लगाते हैं कि देश में रहना है तो वंदे मातरम कहना होगा। उन्होंने कहा कि आनंदमठ उस समय राष्ट्रीय स्तर को ध्यान में रखकर नहीं लिखा गया था क्योंकि इस उपन्यास में लेखक ने भी सप्त करोड़ का जिक्र किया है जिसका आशय संयुक्त बंगाल की सात करोड़ आबादी से था लेकिन बाद में यह गीत अत्यंत लोकप्रिय हो गया है और पूरे देश के लिए पहचान बन गया। सत्ता पक्ष मुस्लिम समाज के खिलाफ बाेलती है और सिर्फ वोट की राजनीति करती है और वंदे मातरम के शब्दों का पालन नहीं करती है। उन्होंने बंगाल में भाजपा को चुनाव लड़ने की चुनौती दी और कहा कि भाजपा को बंगाल चुनाव में सबक सिखाया जाएगा।
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