नैनीताल , नवम्बर 03 -- उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश के मेडिकल कालेजों और उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के मामले में सुनवाई करते हुए सोमवार को राज्य सरकार से पूछा है कि क्या वह रैगिंग को लेकर कोई कानून अस्तित्व में ला रही है।
राज्य सरकार को इस मामले में 17 नवम्बर तक जवाब देना है। हरिद्धार निवासी सचिदानंद डबराल की ओर से दायर जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश जी0 नरेंदर और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने सुनवाई की।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों और उच्च शिक्षण संस्थानोंं में लगातार रैगिंग के मामले सामने आ रहे हैं। केन्द्र और राज्य सरकार इस पर रोक लगाने में नाकाम हो रही हैं। केन्द्र सरकार भी मूक दर्शक बनी हुई है। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि देश में तीन सालों में 2022 से 2024 के मध्य 3156 मामले सामने आए हैं। रैगिंग के चलते 51 छात्रों की मौत हुई है। मेडिकल कॉलेज इस मामले हाट स्पाट बनकर सामने आये हैं। यहां कई गुना मामले बढ़े हैं।
उत्तराखंड में भी 10 मामले सामने आये हैं। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि सरकार ने जो रिपोर्ट पेश की है वह ग़लत और गुमराह करने वाली है।
दूसरी ओर सरकार की ओर से कहा गया कि सरकार की ओर से रैगिंग की रोकथाम के लिए हर एहतियाती कदम उठाए गए हैं। सभी संस्थानों में रैगिंग रोकने के लिए एंटी रैगिंग कमेटी का गठन किया गया है।
खंडपीठ ने इसे गंभीरता से लेते हुए सरकार से पूछा कि इस मामले में कोई कानून क्यों नहीं बनाया गया, मुख्य स्थायी अधिवक्ता सीएससी चंद्र शेखर रावत को निर्देश दिए कि वह राज्य सरकार से पूछकर जवाब पेश करें। सरकार को 17 नवम्बर तक प्रतिशपथ पत्र पेश करने को भी कहा है।
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