नयी दिल्ली , नवम्बर 10 -- मोबाइल के प्रति दीवानगी अब समस्याओं का कारण बनती जा रही है। आंखों की कमजोरी, थकान के बाद अब मोबाइल चलाना डायबिटीज होने का खतरा भी बढ़ा रहा है। यह जानकारी चिकित्सा विशेषज्ञों ने मीडिया को दी।

दिल्ली के यथार्थ अस्पताल में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में चिकित्सकों ने बताया कि डायबिटीज़ अब सिर्फ बुजुर्गों की बीमारी नहीं रही, बल्कि युवाओं और महिलाओं में भी तेजी से फैलने वाली बीमारी बन गयी है।

वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. राजीव गुप्ता ने बताया कि लगभग 90 प्रतिशत डायबिटीज़ के मामले लाइफस्टाइल से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि अधिक देर तक मोबाइल का उपयोग, एक्सरसाइज़ की कमी और असंतुलित आहार इंसुलिन की क्षमता को कमजोर करते हैं। उन्होंने कहा कि अब यह असर बच्चों में भी दिख रहा है, जिनमें तीन से चार घंटे से ज़्यादा स्क्रीन टाइम होने पर मोटापा और इंसुलिन रेसिस्टेंस तेजी से बढ़ रहा है।

वरिष्ठ चिकित्सक इंटरनल मेडिसिन डॉ. संजय गुप्ता ने बताया कि भारत में अब 25 वर्ष से कम उम्र के युवाओं में भी टाइप-2 डायबिटीज़ के मामले सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों, युवाओं से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक का मोबाइल क्रांति के बाद स्क्रीन टाइम तेजी से बढ़ा है। रील देखने, गेम खेलने के साथ मनोरंजन के सभी साधन मोबाइल पर उपलब्ध है इसलिए उसका उपयोग तेजी से बढ़ा है औसतन तीन से चार घंटे हम उसी पर बिता रहे हैं,जिसकी वजह शरीर में शरीर में वसा की मात्रा बढ़ती है जिससे मोटापा बढ़ता है, इसकी वजह से शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस (प्रतिरोध) बढ़ता है और डायबिटीज का खतरा अधिक हो जाता है।

डायबेटोलॉजिस्ट डॉ. अनिल गोंबर ने बताया कि लंबे समय तक प्रदूषण के असर के वजह से डायबिटीज का खतरा लगभग 22 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। दिल्ली-एनसीआर में वायु-प्रदूषण का स्तर बहुत ऊँचा है, और यह डायबिटीज के लिए एक महत्त्वपूर्ण जोखिम-कारक है। उन्होंने कहा कि कोविड के दौरान यह स्थिति और गंभीर हुई, क्योंकि संक्रमण के बाद नए डायबिटीज़ मामलों में काफी बढ़ोतरी देखी गई। उन्होंने कहा कि "लाइफस्टाइल में गिरावट, बढ़ते वजन की समस्या, लंबे समय तक स्क्रीन के सामने रहना और शारीरिक गतिविधि में कमी अब युवाओं को भी डायबिटीज की ओर धकेल रही है।

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