नैनीताल , नवंबर 06 -- उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों में अधिवास के आधार पर प्रदेश की महिलाओं को मिलने वाले 30 प्रतिशत महिला आरक्षण के मामले में गुरुवार को सुनवाई नहीं हो पायी है। इस मामले में अब 12 नवंबर की तिथि मुकर्रर है।

इस प्रकरण को उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त शिक्षक सत्यदेव त्यागी समेत छह अन्य लोगों की ओर से अलग-अलग याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई है।

आज सरकार की ओर से महाधिवक्ता एस एन बाबुलकर इस कोर्ट में पेश नहीं हो पाए। सरकारी पक्ष की ओर से मुख्य न्यायाधीश जी0 नरेंदर की अगुवाई वाली पीठ से इस प्रकरण में सुनवाई के लिए 18 नवंबर की तिथि मुकर्रर करने की मांग की गयी। अदालत ने सरकार की मांग को दरकिनार करते हुए 12 नवंबर की तिथि तय कर दी।

गौरतलब है कि याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर याचिकाओं में उत्तराखंड सरकार द्वारा अधिनियमित उत्तराखंड लोक सेवा (महिलाओं के लिए क्षैतिज आरक्षण) अधिनियम, 2022 के साथ ही राज्य की लोक सेवाओं में उत्तराखंड की महिलाओं को अधिवास के आधार पर मिलने वाले 30 प्रतिशत आरक्षण को चुनौती दी गई है।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 16(3) के प्रावधानों के विरुद्ध है तथा उत्तराखंड विधानसभा इस अधिनियम को पारित करने के लिए सक्षम नहीं है।

आगे कहा कि अधिवास के आधार पर किसी भी रोजगार में आरक्षण केवल भारत की संसद द्वारा ही प्रदान किया जा सकता है, राज्य विधानमंडल द्वारा नहीं। इस प्रकार का आरक्षण प्रदान करना राज्य का संकीर्ण दृष्टिकोण है। क्षेत्र और अधिवास-आधारित आरक्षण राष्ट्र के लिए उचित नहीं है। यह भी कहा गया कि राज्य को महिलाओं को आरक्षण प्रदान करने का अधिकार है लेकिन इसे उत्तराखंड की महिलाओं तक सीमित नहीं रखा जा सकता है। राज्य ने मनमाने ढंग से वर्ग के भीतर एक वर्ग बना दिया है, जिसकी भारत के संविधान के अनुच्छेद 16(3) के तहत अनुमति नहीं है।

वहीं राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि उत्तराखंड विधानसभा इस अधिनियम को पारित करने में सक्षम है। आरक्षण का आधार अधिवास नहीं है। अन्य राज्यों ने भी आरक्षण दिया है। तेलंगाना सरकार की ओर से मेडिकल कॉलेज में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

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