नयी दिल्ली, सितंबर 25 -- उच्चतम न्यायालय ने दुष्कर्म सहित महिलाओं के प्रति बढ़ती अन्य अपराधिक घटनाओं के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में अपना अपना पक्ष रखने का बुधवार को निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता आबाद हर्षद पोंडा की याचिका यह निर्देश दिया।
याचिका में 2012 के निर्भया कांड के बाद लागू किए गए कड़े कानूनों के बावजूद यौन अपराधों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की गई है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि केवल कठोर दंड से इस समस्या (महिलाओं के खिलाफ अपराध) पर अंकुश नहीं लगा है। याचिका में निवारक उपायों तथा व्यापक जागरूकता की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इसमें यौन अपराधों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और पॉक्सो प्रावधानों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने, लैंगिक समानता और महिलाओं के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने वाली नैतिक शिक्षा प्रदान करने, बच्चों में उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने, बलात्कार के प्रति शून्य सहानुभूति और सभी लिंगों के लिए समान सम्मान को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है।
शीर्ष अदालत ने अप्रैल 2025 में ऐसे अपराधों के मूल कारणों का पता लगाने के लिए स्कूलों के अलावा अशिक्षित और स्कूल छोड़ चुके लोगों को शामिल करने हेतु एक बहुआयामी जागरूकता अभियान की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया था।
पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश और मिजोरम को छोड़कर बुधवार को सभी राज्यों के अधिवक्ता उपस्थित थे।
पीठ ने सुनवाई के दौरान राज्यों से पूछा, "क्या आपने प्रार्थनाओं (याचिका में की गई) का अध्ययन कर लिया है?"इस पर राज्यों सरकारों की ओर से पेश वकीलों ने जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय का अनुरोध किया। अदालत ने उनका यह अनुरोध स्वीकार करते हुए निर्देश दिया, "रिट याचिका (खासकर मांगी गई प्रार्थनाओं) का जवाब चार सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाए।"पीठ ने यह भी आदेश दिया कि उत्तर प्रदेश और मिजोरम को अगली सुनवाई पर उपस्थित होने के लिए सूचित किया जाए।
ये दोनों राज्य आज की सुनवाई के दौरान उपस्थित नहीं थे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मामले की सुनवाई आगामी नवंबर में करेगी।
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