, Nov. 9 -- वर्ष 1946 में प्रदर्शित फिल्म 'शमां' में अपने संगीतबद्ध गीत..गोरी चली पिया के देश.. हम गरीबों को भी पूरा कभी आराम कर दे. और ..एक तेरा सहारा ..में उन्होंने ..तबले..का हैदर ने बेहतर इस्तेमाल किया जो श्रोताओ को काफी पसंद आया। इस बीच. उन्होंने बांबे टॉकीज के बैनर तले बनी फिल्म 'मजबूर' के लिये भी संगीत दिया। हैदर ने लता मंगेशकर को अपनी फिल्म 'मजबूर' में गाने का मौका दिया और उनकी आवाज में संगीतबद्ध गीत ..दिल मेरा तोडा.कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने ..श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद ही अन्य संगीतकार भी उनकी प्रतिभा को पहचानकर उनकी तरफ आकर्षित हुये और अपनी फिल्मों में लता मंगेशकर को गाने का मौका दिया तथा उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाबी मिली।
लता मंगेश्कर के अलावा सुधा मल्होत्रा और सुरेन्द्र कौर जैसी छुपी हुयी प्रतिभाओं को निखारने में गुलाम हैदर के संगीतबद्ध गीतों का अहम योगदान रहा है। देश आजाद होने के बाद 1948 में देश के वीरों को श्रद्धाजंलि देने के लिये उन्होंने फिल्म शहीद के लिये ..वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हो.. गीत को संगीतबद्ध किया। देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण यह गीत आज भी लोकप्रिय देशभक्ति गीत के रूप में सुना जाता है और श्रोताओं की आंख को नम कर देता है।
पचास के दशक में मुंबई बंदरगाह पर हुये बम विस्फोटों से मुंबई दहल उठी जिसे देखकर गुलाम हैदर की टीम में शामिल वादकों और संगीतज्ञों ने मुंबई छोड़ कर लाहौर जाने का फैसला कर लिया। गुलाम हैदर ने उन्हें रोकने की हर संभव कोशिश की। यहां तक कि उन्होंने उन्हें दो महीने का अग्रिम वेतन देने की भी पेशकश की लेकिन वे काफी भयभीत थे और लाहौर जाने का मन बना चुके थे। इसके कुछ दिन के बाद गुलाम हैदर भी लाहौर चले गये। वहां उन्होंने शाहिदा (1949), बेकरार (1955), अकेली (1951) और भीगी पलकें (1952) जैसी फिल्मों के गीतों को संगीतबद्ध किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म सफल नहीं हुयी।
इसके बाद गुलाम हैदर ने निर्देशक नाजिर अजमीरी और अभिनेता एस गुल के साथ मिलकर 'फिल्मसाज' बैनर की स्थापना की। फिल्म 'गुलनार' इस बैनर तले बनी गुलाम हैदर की पहली और आखिरी फिल्म साबित हुयी और इसके प्रदर्शन के महज तीन दिन बाद ही वह 09 नवंबर 1953 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।
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