भोआ/ पठानकोट , अक्टूबर 06 -- अंतरराष्ट्रीय समाजसेवी संस्था पीसीटी ह्यूमैनिटी के संस्थापक डॉ.जोगिंदर सिंह सलारिया ने सोमवार को एक गंभीर संवैधानिक मुद्दा उठाते हुए कहा कि जब देश का संविधानसभी नागरिकों को समान अधिकार देता है, तो फिर भोआ और दीनानगर जैसे विधानसभा क्षेत्र आज़ादी से लेकर अब तक आरक्षित क्यों रखे गये हैं?डॉ सलारिया ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म या वर्ग के आधार पर मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। फिर ये दोनों क्षेत्र दशकों से केवल एक ही वर्ग के लिए क्यों आरक्षित हैं?उन्होंने कहा, " देश को आज़ाद हुए 75 साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन भोआ और दीनानगर के मतदाताओं को आज तक अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की पूरी स्वतंत्रता नहीं मिली। यह व्यवस्था न केवल लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है, बल्कि उस संवैधानिक आदर्श का भी अपमान है जिसमें बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 'समान अधिकारों वाला भारत' देखा था। "डॉ. सलारिया ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और पंजाब सरकार से सीधा सवाल किया, "क्या यह लोकतंत्र केवल चुनिंदा वर्गों के लिए है? क्या सामान्य वर्ग के मतदाताओं के अधिकारों को सदा के लिए कुर्बान कर दिया गया है?"उन्होंने राजनीतिक दलों पर भी तीखा प्रहार करते हुए कहा कि सभी दल इस गंभीर विषय पर चुप्पी साधे हुये हैं। उन्होंने कहा, "आरक्षण की नीति संविधान में केवल दस वर्षों के लिए एक अस्थायी सामाजिक न्याय व्यवस्था के रूप में रखी गयी थी, लेकिन इसे राजनीतिक स्वार्थों के कारण बार-बार बढ़ाया गया। अब जबकि समाज, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में व्यापक बदलाव आ चुके हैं, यह व्यवस्था संवैधानिक पुनर्विचार की मांग करती है।"डॉ. सलारिया ने कहा कि अब समय आ गया है कि आरक्षण की नीति जातिगत नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर तय की जाये।

उन्होंने कहा, "भारत जैसे विकासशील देश में अब जाति नहीं, बल्कि आर्थिक स्थिति और शिक्षा ही असली मापदंड होने चाहिए। शिक्षा में जातिगत आरक्षण बच्चों के मनोबल को तोड़ता है। हर विद्यार्थी को उसकी मेहनत और योग्यता के आधार पर अवसर मिलना चाहिए, न कि उसकी जातिगत पहचान के आधार पर।" प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नारे 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' का उल्लेख करते हुए डॉ. सलारिया ने कहा कि यह नारा तभी सार्थक होगा जब समाज के हर वर्ग को समान अवसर और अधिकार प्राप्त होंगे। यदि ऊंच-नीच और जाति आधारित भेदभाव समाप्त किया जा चुका है, तो फिर सामान्य वर्ग को संवैधानिक अधिकारों से वंचित क्यों रखा जा रहा है? उन्होंने कहा कि जब संविधान में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए विशेष प्रावधान किये जा सकते हैं, तो सामान्य वर्ग के मतदाताओं को सदा के लिए प्रतिनिधित्व से वंचित रखना न केवल अनुचित है, बल्कि यह उनके लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति के अधिकार का भी हनन है।

नशामुक्त पंजाब के लिए रोज़गार को मूल शर्त बताते हुए डॉ. सलारिया ने कहा, "जब तक सरकार बेरोजगार युवाओं के लिए स्थायी रोज़गार के अवसर नहीं बनाती, तब तक नशामुक्ति केवल एक नारा ही बनी रहेगी। बेरोजगारी ही वह जड़ है जो युवाओं को नशे की ओर धकेलती है।"उन्होंने साथ ही अनैतिक धर्म परिवर्तन और जनसंख्या नियंत्रण पर सख्त कानून बनाने की मांग की और कहा कि भारत का संविधान देश की एकता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुता का प्रतीक है - इसे कभी भी राजनीतिक या धार्मिक स्वार्थ की भेंट नहीं चढ़ाया जाना चाहिए।

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