नयी दिल्ली, सितंबर 25 -- देश में स्तन और फेफड़ों के कैंसर में न केवल बढ़ोतरी हो रही है बल्कि इनकी वजह से लोगों की मौतों का आंकड़ा भी लगातार बढ़ रहा है। लैंसेट की नयी रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।

इस निराशाजनक परिद्श्य में एक सकारात्मक तथ्य यह है कि कैंसर से होने वाली 40 प्रतिशत मौतें तंबाकू के सेवन, अस्वास्थ्यकर आहार और उच्च रक्त शर्करा के स्तर जैसे परिवर्तनीय जोखिम कारकों से जुड़ी हैं। विशेषज्ञ इस बात पर ज़ोर देते हैं कि जीवनशैली में बदलाव और निवारक समाधान आने वाले वर्षों में कैंसर के मामलों को काफी कम कर सकते हैं।

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) कैंसर कोलैबोरेटर्स द्वारा द लैंसेट में प्रकाशित व्यापक वैश्विक विश्लेषण के अनुसार भारत में 1990 के दौरान प्रति लाख जनसंख्या पर 84.8 कैंसर के मामले देखे जाते थे। वर्ष 2023 तक यह आंकड़ा 26.4 प्रतिशत से बढ़कर 107.2 प्रति लाख हो गया। इसी अवधि के दौरान आयु मानकीकृत मृत्यु दर भी 71.7 से बढ़कर 86.9 प्रति लाख हो गई, जो 21.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है।

वर्ष 2022 में भारत में 14 लाख कैंसर के मामले और 9,10,000 मौतें दर्ज की गईं। आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, निगरानी और निदान में कमियों के कारण ये आंकड़े कम रिपोर्ट किए जाने की संभावना है।

अनुमानों के अनुसार, 2050 तक यह संख्या बढ़कर 30.5 करोड़ जाएगी और प्रति वर्ष 1.86 करोड़ लोगों की मौतें होंगी, जो क्रमशः 60 प्रतिशत और 75 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि है। इसका सबसे अधिक प्रभाव भारत सहित निम्न और मध्यम आय वाले देशों में पड़ने की उम्मीद है।

कई उच्च आय वाले देशों में फेफड़े और कोलोरेक्टल कैंसर प्रमुख हैं जबकि भारत में वर्ष 2023 में स्तन कैंसर कैंसर का सबसे घातक रूप बनकर उभरा जिसके परिणामस्वरूप प्रति 100,000 जनसंख्या पर 8.5 मौतें हुईं। इसके बाद फेफड़ों का कैंसर, जिसमें श्वासनली और ब्रोन्कियल प्रकार शामिल हैं, का स्थान रहा, जिसके परिणामस्वरूप प्रति 100,000 पर 8.4 मौतें दर्ज की गईं। ग्रासनली कैंसर के कारण प्रति 100,000 पर 8.2 मौतें हुईं, जबकि पेट के कैंसर के कारण 6.9 मौतें हुईं।

तंबाकू और सुपारी के सेवन से जुड़े मुख और होंठ के कैंसर ने भी एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती पेश की है, जिसके परिणामस्वरूप प्रति 100,000 जनसंख्या पर 6.5 मौतें हुईं। ये आंकड़े जीवनशैली से संबंधित और पर्यावरण से जुड़े कैंसर के दोहरे बोझ को रेखांकित करते हैं, खासकर शहरी और अर्ध-शहरी आबादी में तंबाकू का सेवन, वायु प्रदूषण, खराब आहार पैटर्न और देरी से निदान इसके प्रमुख कारण बने हुए हैं।

विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि भारत का अपर्याप्त स्वास्थ्य ढांचा कैंसर देखभाल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए संघर्ष कर सकता है। जीबीडी विश्लेषण की सह-लेखिका और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की प्रो. राखी डंडोना ने कहा, "भारत में केवल 38 जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री हैं, जो केवल 12 प्रतिशत आबादी को कवर करती हैं।"अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) की प्रमुख लेखिका डॉ. लिसा फोर्स ने रिपोर्ट में चेतावनी दी है, "मामलों और मौतों में ज़्यादातर बढ़ोतरी जनसंख्या वृद्धि और बढ़ती उम्र के लोगों के कारण होगी। हालांकि गैर-संचारी रोगों जिनमें कैंसर भी शामिल है के कारण होने वाली असामयिक मृत्यु दर को 2030 तक एक तिहाई तक कम करने के संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) से सुधार अभी भी बहुत दूर है।"जीबीडी अध्ययन में कैंसर से होने वाली 40 प्रतिशत से ज़्यादा मौतों के लिए तंबाकू के सेवन, खराब आहार, उच्च रक्त शर्करा और वायु प्रदूषण जैसे परिवर्तनीय जोखिम कारकों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है।

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