श्री सिंह ने कहा कि पड़ोसी देशों में अस्थिरता का असर अक्सर समुद्री क्षेत्र में दिखाई देता है। उन्होंने म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल और अन्य क्षेत्रीय देशों में लगातार हो रही घटनाओं का हवाला दिया जो शरणार्थियों की आमद, अवैध प्रवास और अनियमित समुद्री गतिविधियों के माध्यम से तटीय सुरक्षा, विशेष रूप से बंगाल की खाड़ी में, को प्रभावित करती हैं। उन्होंने आईसीजी से न केवल नियमित निगरानी बनाए रखने, बल्कि भू-राजनीतिक जागरूकता और बाहरी गतिविधियों पर त्वरित प्रतिक्रिया देने के लिए तत्परता बनाए रखने का भी आग्रह किया।समुद्री सुरक्षा को सीधे भारत की आर्थिक मजबूती से जोड़ते हुए रक्षा मंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बंदरगाह, नौवहन मार्ग और ऊर्जा अवसंरचना देश की अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएं हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा, "भौतिक या साइबर, समुद्री व्यापार में व्यवधान का सुरक्षा और अर्थव्यवस्था दोनों पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। हमें राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा को एक समान मानना होगा।"श्री सिंह ने आईसीजी को राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बताया और कहा कि बल एक मामूली बेड़े से खुद को 152 जहाजों और 78 विमानों के साथ एक दुर्जेय बल में बदल लिया है।उन्होंने कहा कि सशस्त्र बल जहां बाहरी खतरों से बचाव पर ध्यान केंद्रित करते हैं और अन्य एजेंसियां आंतरिक सुरक्षा का प्रबंधन करती हैं, वहीं आईसीजी दोनों क्षेत्रों में निर्बाध रूप से कार्य करता है। उन्होंने , ' ' विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में गश्त करके, आईसीजी न केवल बाहरी खतरों को रोकता है, बल्कि अवैध मछली पकड़ने, मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी, तस्करी, मानव तस्करी, समुद्री प्रदूषण और अनियमित समुद्री गतिविधियों से भी निपटता है।"रक्षा मंत्री ने नौसेना, राज्य प्रशासन और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ बहु-एजेंसी समन्वय में आईसीजी की भूमिका की प्रशंसा की और इसे इसकी सबसे बड़ी शक्तियों में से एक बताया।श्री सिंह ने आईसीजी के आधुनिकीकरण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई और बताया कि इसके पूंजीगत बजट का लगभग 90 प्रतिश स्वदेशी परिसंपत्तियों के लिए आवंटित किया जाता है। उन्होंने भारत में जहाजों और विमानों के निर्माण, मरम्मत और रखरखाव में हुई प्रगति की सराहना की और इसे आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया।रक्षा मंत्री ने जमीनी और समुद्री सीमाओं की तुलना करते हुए कहा कि जहां जमीनी सीमा स्थायी, स्पष्ट रूप से चिह्नित और अपेक्षाकृत पूर्वानुमानित होती हैं, वहीं समुद्री सीमाएं परिवर्तनशील होती हैं और ज्वार-भाटे, लहरों और मौसम के कारण लगातार बदलती रहती हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा, " समुद्री सुरक्षा ज़मीनी सीमाओं की तुलना में कहीं अधिक जटिल और अप्रत्याशित है और इसके लिए निरंतर सतर्कता की आवश्यकता होती है।"श्री सिंह ने ज़ोर देकर कहा कि भारत की 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप जैसे द्वीपीय क्षेत्रों के साथ, विकट चुनौतियां पेश करती है, जिसके लिए उन्नत तकनीक, सुप्रशिक्षित कर्मियों और चौबीसों घंटे निगरानी की आवश्यकता होती है।
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