मुंबई , नवंबर 07 -- भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने शुक्रवार को कहा कि देश के बैंकिंग क्षेत्र की स्थिति आज एक दशक पहले की तुलना में मजबूत और विभिन्न मानकों पर बैंकों का प्रदर्शन काफी सुधरा है।

गवर्नर मल्होत्रा ने विदेशी मुद्रा भंडार की वर्तमान स्थिति को भी मजबूत बताया और कहा कि इस मजबूती के मद्देनजर ही केंद्रीय बैंक ने भारतीय इकाइयों को विदेशों से वाणिज्यि कर्ज जुटाने के नियमों को उदार बनाया है। वह यहां 12वें भारतीय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बैंकिंग एवं आर्थिक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा, "भारतीय बैंक आज एक दशक पहले की तुलना में कहीं अधिक परिपक्व हैं। इसे परिप्रेक्ष्य में रखें तो, बैंकों का ऋण और जमा लगभग तीन गुना तक बढ़ चुका हैं। पूँजीगत बफर भी मज़बूत हुए हैं - सीआरएआर 31 मार्च, 2015 के 13.5 प्रतिशत से बढ़कर 31 मार्च, 2025 तक 17.5 प्रतिशत हो गया, और इसी अवधि के दौरान सामान्य इक्विटी टीयर-1 पूंजी 10.43 प्रतिशत से बढ़कर 14.73 प्रतिशत हो गयी है।"उन्होंने कहा कि बैंकों की परिसंपत्तियों की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। बैंकिंग खेत्र में सकल अवरुद्ध कर्ज या सम्मत्ति (जीएनपीए) तथा शूद्ध अवरुद्ध सम्पत्ति (एनएनपीए) मार्च 2018 में क्रमशः 11.2 प्रतिशत और 5.96 प्रतिशत तक पहुंच गयी थी जो मार्च 2025 में घटकर 2.3 प्रतिशत और 0.5 प्रतिशत रह गए हैं।

आरबीआई गर्वर ने बैंकों के लाभ में उल्लेखनीय वृद्धि का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्ष 2017-18 में परिसंपत्तियों पर 0.24 प्रतिशत का नुकसान हो रहा था जो जबकि 2024-25 में सम्पत्तियों पर प्रतिफल 1.37 प्रतिशत हो गया। इसी तरह इसी दौरान इक्विटी पर दो प्रतिशत घाटे की स्थिति से उबर कर बैंक 14 प्रतिशत लाभ में आ गये।

उन्होंने कहा कि कारोबार के नियमों में बदलाव करते समय बैंकों इस प्रदर्शन और इन बदली हुई वास्तविकताओं को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा, "विकास का तात्पर्य है कि विवेकपूर्ण बैंकिंग की नियम-पुस्तिकाओं को भी एक संतुलित तरीके से विकसित किया जाए क्योंकि बैंक अब अधिक मज़बूत हैं और वातावरण अधिक सतर्क है, जबकि जोखिम-वहन वैकल्पिक स्तंभों का आधार भी गहरा हुआ है और बाज़ार-आधारित जोखिम हस्तांतरण तंत्र अधिक प्रभावी हो चुके हैं।"उन्होंने कहा कि विदेशों से वाणिज्यिक कर्ज (ईसीबी) के नियमों में हाल में किये गये उपाय भी देश की वाह्य स्थिति की मजबूत पृष्ठभूमि पर आधारित हैं। देश के चालू खाते में वित्त वर्ष 2024-25 में की चौथी तिमाही में 13.5 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी के 1.3 प्रतिशत) के बराबर का अधिशेष दर्ज किया गया था। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में चालू खाते में 2.4 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 0.2 प्रतिशत) का मामूली घाटा रहा।

उन्होंने कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 690-700 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो लगभग 11 महीनों के व्यापारिक आयात को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। पूंजी खाता मजबूत बना हुआ है।

अप्रैल-जुलाई 2025 के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) के माध्यम से शुद्ध विदेशी निवेश, बाह्य वाणिज्यिक कर्ज और एनआरआई जमा के तहत भारत में शुद्ध विदेशी पूंजी की आमद 30.4 अरब डॉलर अधिक रही। यह पिछले वित्त वर्ष के दौरान इसी अवधि में इन मदों में आयी 26.8 अरब डॉलर की विदेशी पूंजी से अधिक है।

आरबीआई गवर्नर ने कहा, "हमारे अनुमान दर्शाते हैं कि शेष वर्ष के दौरान भी पूंजी प्रवाह काफी मजबूत बना रहेगा।" उन्होंने विदेशी वाणिज्यिक कर्ज के नियमों के पुनर्निर्धारण को भारत के वित्तीय विकास में एक स्वाभाविक कदम बताया और कहा कि यह मजबूत बुनियादी सिद्धांतों पर आधारित है, विवेक से निर्देशित है, और अर्थव्यवस्था की अपनी शर्तों पर वैश्विक वित्त के साथ जुड़ने की क्षमता में विश्वास से प्रेरित है।

उन्होंने कहा कि विदेशी वाणिज्यक कर्ज के मामले में समग्र लागत सीमा को हटाने से प्रतिस्पर्धी दरों को बढ़ावा मिलेगा और विवेकपूर्ण हेजिंग को भी प्रोत्साहन मिलेगा। इसी तरह स्वचालित मार्ग के तहत विदेशी वाणिज्यिक कर्ज उठाने की सीमा को उधारकर्ता की नेट वर्थ के साथ जोड़ने से कर्ज उधारकर्ता की क्षमता से जुड़ जाता है, साथ ही कारोबार करने में आसानी भी बढ़ती है। यह सीमा और कुल बकाया विदेशी वाणिज्यिक कर्ज पर सकल घरेलू उत्पाद के 6.5 प्रतिशत पर की समग्र सीमा विदेशी कर्ज पर निर्भरता के जोखिमों को कम करेगी।

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