नयी दिल्ली, सितंबर 26 -- बुजुर्गों की सहायता एवं सेवा के लिए प्रतिबद्ध हेल्पएज इंडिया संस्था ने अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस 2025 के अवसर पर 'एडवांटेज60: पावरिंग एस्पिरेशंस' अभियान शुरू किया। इस अभियान का उद्देश्य भारत के वरिष्ठ नागरिकों की ताकत, धैर्य और छुपी हुई क्षमताओं को सामने लाना और उनकी सक्रियता को कायम रखना है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में प्रसिद्ध कलाकार रघुबीर यादव विशेष अतिथि के तौर पर मौजूद थे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि 100 वर्षीय इसरो के पूर्व वैज्ञानिक प्रोफेसर ईवी चिटनिस ने वर्चुअल माध्यम से जुड़े और जीवन यात्रा के अनुभवों को साझा किया। उन्होंने बताया कि "मुझे स्वस्थ रहने या लंबी उम्र का कोई राज़ नहीं पता। लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि मैंने अपने काम और शोध में अपनी जी जान लगा दी थी, भले ही मुझे कई संघर्षों से गुजरना पड़ा। हमने अंतरिक्ष विज्ञान शोध की शुरुआत इस सोच के साथ की थी कि भारत इसमें उत्कृष्टता हासिल करे।
हेल्पएज की 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार करीब 40 प्रतिशत लोग अपनी सक्रियता तक काम करना चाहते हैं। संगठन की इस साल की एक रिसर्च स्टडी में पाया गया कि आज के अधिकांश युवा वरिष्ठ नागरिकों को 'निर्भर' (48 प्रतिशत) मानते हैं। जबकि वह उनको 'बुद्धिमान' (51 प्रतिशत) और 'सम्मानित' (43 प्रतिशत) भी समझते हैं।
हेल्पएज इंडिया के सीईओ रोहित प्रसाद ने कहा कि "यह बहुत ज़रूरी है कि हम साठ साल के बाद की ज़िंदगी के अवसरों और खुशियों को पहचानें। आज ज्यादा से ज्यादा बुज़ुर्ग सक्रिय, जुड़े हुए और सम्मानित रहना चाहते हैं। वे केवल निर्भर नहीं, बल्कि समाज में योगदान देने वाले सदस्य बनना चाहते हैं। वे काम करना, नया व्यवसाय शुरू करना, स्वयंसेवा करना, मार्गदर्शन देना और अपने अनुभव साझा करना चाहते हैं। लेकिन उनके लिए मौके अभी बहुत कम हैं।
हेल्पएज इंडिया के चेयरपर्सन 78 वर्षीय किरण कार्णिक ने आईटी सेक्टर में नेतृत्व करने के साथ भारत और दक्षिण एशिया में डिस्कवरी चैनल की शुरुआत की और इसरो में 20 साल से ज्यादा समय तक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों पर काम किया है। अब वे लेखक और कॉलमिस्ट हैं।
श्री कार्णिक ने कहा कि बुज़ुर्गों को बोझ नहीं बल्कि एक मूल्यवान संसाधन माना जाए। दवा, विज्ञान और स्वास्थ्य में सुधार के कारण अब लंबी उम्र और सक्रिय उम्र बढ़ने का विचार बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। उन्होंने कहा कि सोचिए अगर इसमें करीब 1.4 करोड़ बुज़ुर्गों का योगदान भी जोड़ सकें तो क्या असर होगा। इसके लिए बस ज़रूरत है कि उन्हें सही प्रशिक्षण, अवसर और बुज़ुर्ग-केंद्रित स्वास्थ्य सेवाएं मिलें।
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