, Dec. 16 -- लोक जनशक्ति पार्टी (आर) की शाम्भवी ने कहा कि केन्द्र सरकार बीमा के माध्यम से सबकी आय सुरक्षित करना चाहती है। बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश (एफडीआई) से इस क्षेत्र में प्रतियोगिता बढ़ेगी। उन्होंने बिहार की आजीविका मिशन से जुड़ी महिलाओं को भी बीमा के दायरे में लाने की मांग की।

समाजवादी पार्टी के राजीव राय ने कहा कि बीमा क्षेत्र में एफडीआई किसानों, गरीब छात्रों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई लाने से संबंधित इस विधेयक में सामाजिक सुरक्षा की कोई बात नहीं है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी किसी भी क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई के विरुद्ध है, जिस क्षेत्र के लिए ऐसे प्रावधान होंगे, उनका दल विरोध करेगा।

राष्ट्रीय जनता दल के अभय कुमार सिन्हा ने कहा कि यह विधेयक बीमा सुरक्षा का नहीं, बीमा बाजारीकरण का विधेयक है। 100 प्रतिशत एफडीआई वाली कंपनी का बोर्ड विदेशी होगा, निर्णायक प्रक्रिया विदेशियों के हाथ में होगी, तो भारतीयों का हित कैसे होगा। उन्होंने कहा कि यह विधेयक भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को निजीकरण की ओर ले जाना वाला है। उन्होंने एलआईसी को वैधानिक संरक्षण दिये जाने की मांग की। उन्होंने विधेयक का विरोध किया।

तेलुगूदेशम पार्टी के लवू श्रीकृष्ण देवरायलु ने कहा कि यह विधेयक बीमा कंपनियों को लोकतांत्रिक बनायेगा। यह विधेयक ठीक है, इसे इसके लक्ष्यों के हिसाब से देखना चाहिए। वह इसके समर्थन में हैं।

आम आदमी पार्टी के मालविंदर सिंह कंग ने कहा कि हमारी कोशिश होनी चाहिए कि एलआईसी का सरलीकरण कैसे किया जाये, तभी सामाजिक न्याय किया जा सकेगा।

कांग्रेस के मुहम्मद हमीदुल्लाह सईद ने कहा कि बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई से बीमा क्षेत्र में विदेशी स्वामित्व बढ़ जायेगा। निर्णय और जोखिम से निपटने की प्रक्रिया समस्यायें खड़ी करेगी। इसकी वजह से घरेलू व्यवसाय में नुकसान देखने को मिलेगा। उद्यमिता और लोगाें को इससे कोई फायदा नहीं होगा। सरकार से वह आग्रह करते हैं कि इस संशोधन को टालें। वह विधेयक का विरोध करते हैं।

भाजपा के मन्ना लाल रावत ने कहा कि व्यापक स्तर पर सामाजिक और आर्थिक न्याय की बात की जाये, तो यह बहुत अच्छा है। बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई के प्रावधान किये जाने से संचित निधि पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पालिसी धारकों के हितों का संरक्षण किया जा सकेगा। उन्होंने इस विधेयक को सर्वसम्मति से पारित किये जाने की मांग की।

वाईएसआरसीपी के अविनाश रेड्डी ने कहा कि इस पहल से बीमा क्षेत्र में बढ़त देखी जा सकेगी। ग्रामीण क्षेत्रों में बीमा का दायरा बढ़ेगा । भारत सरकार को सार्वभाैमिक बीमा की ओर बढ़ना चाहिए। वह विधेयक का समर्थन करते हैं।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के के राधाकृष्णन ने कहा कि यह विधेयक सामाजिक सुरक्षा की बात नहीं करता। यह बीमा सहित सभी क्षेत्रों को निजीकरण की ओर बढ़ाता हुआ दिखाई देता है। यह निजी क्षेत्र को बढ़ावा देता है। देश में आम आदमी को सुरक्षा देने में एलआईसी ने अहम भूमिका निभाई है। इससे हमें नुकसान देखने को मिलेगा। यह विधेयक बाजार को ज्यादा सुरक्षा देता हुआ दिखाई देता है। वह इस विधेयक का विरोध करते हैं, सरकार को इसे वापस लेना चाहिए।

आईयूएमएल के ईटी मोहम्मद बशीर ने कहा कि वह निवेदन करते हैं कि एलआईसी को बचायें। इस विधेयक के पारित होने से एलआईसी को बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियों से मुकाबला करना पड़ेगा। एलआईसी के सामने पहले से ही मुश्किलें हैं, यदि एलआईसी को बचाना है, तो हमें 100 प्रतिशत एफडीआई से मुकाबले की तैयारियां पहले से ही करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में स्वतंत्र और मजबूत विनियामक की आवश्यकता है। सरकार को निगरानी और उत्तरदायित्व भी लेना चाहिए। सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र को सहयोग देना चाहिए। बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई गलत प्रभाव डालेगा।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सेल्वाराज वी ने कहा कि एलआईसी के कर्मचारी और एजेंट गरीब और वंचितों के लिए भी काम करते हैं। यह विधेयक सरकारी बीमा क्षेत्र के कर्मचारियों की नौकरियों पर खतरा उत्पन्न करता है। इससे राष्ट्रीय संस्थाओं पर विपरीत असर पड़ेगा। वह इसका विरोध करते हैं। चीन जैसे विकसित राष्ट्र ने भी बीमा क्षेत्र को सरकारी नियंत्रण में रखा है। लैटिन अमेरिकी देशों में बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई के दुष्परिणाम सबके सामने हैं। वह इस विधेयक का विरोध करते हैं। सरकार इसे वापस ले।

रिवाेल्यूशरी साेशलिस्ट पार्टी के एन के रामचन्द्रन ने कहा कि 2008 में जब वैश्विक मंदी आयी थी, तो देश के मजबूत सार्वजनिक क्षेत्र ने विपरीत असर से बचाया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश पर वैश्विक मंदी का कोई खास नहीं पड़ने की वजह यहां के मजबूत सार्वजनिक उपक्रम हैं। देश की मजबूत बैंकिंग प्रणाली ने तब देश की बहुत मदद की थी। उन्होंने कहा कि एलआईसी जैसी सांविधिक संस्था को 1956 में पांच करोड़ रुपये की पूंजी से खड़ा किया गया था और आज उसकी पूंजी देखिये, कहां पहुंच गयी है। एलआईसी के निवेश से कितना बुनियादी ढांचा विकसित हुआ है, इस पर गौर करना बहुत जरूरी है। बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश राष्ट्रीय हित में नहीं होगा। विदेशी कंपनियां हमारे राष्ट्रीय हित को कभी नहीं सोचेंगी।

श्री प्रेमचंद्रन ने कहा कि आज एलआईसी की बीमा क्षेत्र में हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से अधिक है। विदेशी कंपनियों के आने से एलआईसी पर बुरा असर पड़ेगा। उन्होंने सार्वजनिक उपक्रमों की मदद की मांग की। उन्होंने इस विधेयक का विरोध किया और उसे वापस लेने की मांग की।

कांग्रेस के वी वैथिलिंगम ने कहा कि बड़े अस्पताल अभी निजी बीमा कंपनियों के कार्ड स्वीकार नहीं करते, तो बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियां कैसे काम करेंगी, यह समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि फसल बीमा में खामियां हैं। फसल क्षति से किसान बहुत प्रभावित होते हैं, गन्ना किसानों को प्राय: नुकसान उठाना पड़ता है। उन्होंने फसल बीमा योजना की खामियां दूर करने की मांग की।

उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र के बैंक प्राथमिकता क्षेत्र के लिए ऋण नहीं देते। मुद्रा योजना के लिए भी ऋण से इन्कार करते हैं तो बड़ी-बड़ी विदेशी बीमा कंपनियां ग्रामीणों और गरीबों के हितों के लिए काम कैसे करेंगी, यह सोचने वाली बात है। उन्होंने विधेयक का विरोध किया।

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