जालंधर , नवंबर 05 -- बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की राष्ट्रीय समन्वय समिति (एनसीसीओईईई) बिजली के निजीकरण और बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 के खिलाफ 30 जनवरी को नयी दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक विशाल रैली आयोजित करेगी और देश भर के सभी राज्यों के बिजली कर्मचारी और इंजीनियर इसमें भाग लेंगे।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) वीके गुप्ता ने बुधवार को बताया कि बैठक में एआईपीईएफ के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे और महासचिव पी. रत्नाकर राव और मोहन शर्मा, सुदीप दत्ता, के. अशोक राव, कृष्णा भोयूर, लक्ष्मण राठौड़, संतोष खुमकर, संजय ठाकुर आदि उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि बिजली निजीकरण और बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन शुरू करने के लिए किसान और आम उपभोक्ता संगठनों के साथ एक संयुक्त मोर्चा बनाने का भी निर्णय लिया गया। संयुक्त मोर्चे की पहली बैठक आगामी 14 दिसंबर को दिल्ली में होगी।
एनसीसीओईईई ने मांग की है कि केंद्र सरकार किसान विरोधी, उपभोक्ता विरोधी और कर्मचारी विरोधी बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 को तुरंत वापस ले। यह निर्णय लिया गया कि अगर भारत सरकार उनकी आवाज सुनने में विफल रहती है तो देश भर के 20 लाख सत्तर हजार बिजली कर्मचारी और इंजीनियर बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 और बिजली क्षेत्र के निजीकरण के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन शुरू करने के लिए मजबूर होंगे। आज जारी एक बयान में एआईपीईएफ के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने कहा कि केंद्र सरकार विद्युत (संशोधन) विधेयक के ज़रिए देश के पूरे ऊर्जा क्षेत्र का निजीकरण करना चाहती है। निजीकरण के बाद बिजली की दरें इतनी ज़्यादा हो जाएँगी कि वे किसानों और आम उपभोक्ताओं की पहुंच से बाहर हो जाएंगी। उन्होंने कहा कि संशोधन विधेयक की धारा 14, 42 और 43 के माध्यम से निजी कंपनियों को बिजली आपूर्ति के लिए सरकारी बिजली वितरण कंपनियों के नेटवर्क का उपयोग करने का अधिकार दिया जा रहा है और बदले में वे सरकारी डिस्कॉम को केवल नाममात्र व्हीलिंग शुल्क का भुगतान करेंगी। इसका वित्तीय बोझ सरकारी बिजली वितरण निगमों पर पड़ेगा, जबकि निजी कंपनियों को इस नेटवर्क के जरिए पैसा कमाने की आजादी मिल जाएगी।
उन्होंने कहा कि इस संशोधन विधेयक के तहत निजी कंपनियों पर सार्वभौमिक बिजली आपूर्ति की बाध्यता नहीं होगी।
श्री दुबे ने बताया कि संशोधन विधेयक में धारा 61(जी) में संशोधन का प्रस्ताव है ताकि अगले पांच वर्षों में क्रॉस-सब्सिडी को समाप्त किया जा सके। इसके साथ ही, विधेयक में प्रावधान है कि बिजली की दरें लागत-प्रतिबिंबित होनी चाहिए, यानी किसी भी उपभोक्ता को लागत से कम कीमत पर बिजली नहीं दी जानी चाहिए। इसका मतलब है कि किसानों को 6.5 हॉर्सपावर के पंप के लिए कम से कम 12,000 रुपये प्रति माह बिजली बिल देना होगा, अगर वह पंप दिन में छह घंटे भी चलता है।
इसी तरह, गरीबी रेखा से नीचे के उपभोक्ताओं के लिए बिजली की दरें कम से कम 10-12 रुपये प्रति यूनिट हो जायेगी। इसके अलावा, विधेयक में आभासी बिजली बाजारों और बाजार-आधारित व्यापार प्रणालियों को बढ़ावा देने का प्रस्ताव है। इससे दीर्घकालिक समझौते अस्थिर होंगे और बिजली की कीमतें और अधिक अस्थिर हो जाएँगी। उन्होंने कहा कि बिजली संविधान की सातवीं अनुसूची में समवर्ती सूची के अंतर्गत सूचीबद्ध है, जिसका अर्थ है कि बिजली के मामलों में केंद्र और राज्य सरकारों के समान अधिकार हैं। इस संशोधन विधेयक के माध्यम से केंद्र सरकार बिजली के मामलों में राज्यों के अधिकारों को छीन रही है और बिजली वितरण एवं शुल्क निर्धारण में केंद्र सरकार का सीधा हस्तक्षेप होगा, जो संघीय ढांचे और संविधान की भावना के विरुद्ध है।
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