बलौदाबाजार , अक्टूबर 02 -- पूरा देश गुरुवार को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती मना रहा है। महात्मा गांधी का छत्तीसगढ़ से भी गहरा नाता रहा है। बलौदाबाजार की धरती ने उस ऐतिहासिक क्षण को देखा था, जिसने स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक चेतना दोनों को नई दिशा दी।
26 नवंबर 1933 को महात्मा गांधी रायपुर से होते हुए बलौदाबाजार पहुंचे थे। उस समय आज़ादी का संघर्ष तेज़ी से आगे बढ़ रहा था। गांधीजी के आगमन की खबर सुनकर हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी।
कृषि उपज मंडी प्रांगण में उन्होंने विशाल सभा को संबोधित किया। लेकिन असली संदेश उन्होंने तब दिया जब उन्होंने छुआछूत की दीवारें तोड़ते हुए एक दलित भाई से कुएं से पानी निकलवाकर पिया और फिर सभी को वही पानी पिलाया।
गांधीजी ने बलौदाबाजार की धरती से ऐलान किया था, "जब तक छुआछूत जैसी बुराई खत्म नहीं होगी, तब तक आज़ादी अधूरी रहेगी।" यह संदेश पूरे प्रदेश में गूंज उठा और समाज में बराबरी व सामाजिक सुधार की नई लहर फैल गई।
बलौदाबाजार की पुरानी कृषि मंडी में वह कुआं आज भी मौजूद है, जिसे गांधीजी के इस अद्वितीय संदेश और सामाजिक क्रांति का प्रतीक माना जाता है।
गांधी जयंती के अवसर पर यह स्थान आज भी उस ऐतिहासिक घटना का साक्षी है, जिसने आज़ादी की लड़ाई को मजबूती दी और समाज को समानता का पैगाम दिया।
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