नयी दिल्ली, सितम्बर 27 -- हिमालय पर आ रही प्राकृतिक आपदाओं को लेकर प्रबुद्ध नागरिकों ने उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई को पत्र लिखा है और हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी को तत्काल संज्ञान में लेने की अपील करते हुए आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया है ताकि आने वाली पीढ़ियों को इसका खामियाजा न भुगतना पड़े।
देश के इन प्रबुद्ध नागरिकों ने चार धाम परियोजना के तहत सड़कों के चौड़ीकरण की अनुमति देने वाली अदालत के पूर्व निर्णय की समीक्षा की मांग की है। प्रबुद्ध नागरिकों ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय के हिमाचल प्रदेश में 'अस्तित्वगत के संकट' की बात स्वीकार करने का जिक्र करते हुए कहा कि इसी तरह की स्थिति से पूरे पश्चिमी हिमालय, विशेषकर जम्मू-कश्मीर में भी गंभीर संकट पैदा हो गया है। यदि समय रहते सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो पूरे देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगाउच्चतम न्यायालय को पत्र लिखकर यह अनुरोध पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, संघ विचारक के एन गोविंदाचार्य, पूर्व सांसद डॉ. कर्णसिंह, प्रसिद्ध लेखक रामचंद्र गुहा, सांसद कुंवर रेवतीरमण सिंह और रंजीता रंजन, इतिहासकार शेखर पाठक, पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा सहित 59 राजनेताओं, पर्यावरणविंदों, भूवैज्ञानिकों, वन क्षेत्र के विशेषज्ञों ने किया है।
पत्र में उच्चतम न्यायालय की उस चेतावनी का भी जिक्र है जिसमें कहा गया है कि हिमाचल में पर्यावरण का जो संकट है यदि उस पर ध्यान नहीं दिया गया तो हिमाचल देश के नक्शे से गायब हो जाएगा। उत्तराखंड में बादल फटने की जो घटनाएं हो रही हैं पहाड़ों को तबाह कर रही है और हिमालय से निकलने वाली नदियों को प्रभावित कर रही हैं जिनका असर देश के मैदानी क्षेत्रों पर भी पड़ेगा।
प्रबुद्ध नागरिकों का कहना है कि पर्यावरण में आ रहे बदलावों के कारण पिछले दशक से हिमालय के उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू कश्मीर ने बड़ी तबाही देखी है। उन्होंने इसके लिए ढांचागत विकास की अवैज्ञानिक दौड़ को भी दोषी बताया और कहा कि इससे जहां पहाड़ों की कटाई हो रही है, जंगल की भूमि का क्षरण हो रहा है तथा बड़ी मात्रा में मलबा नदियों में आ रहा है। इसी तरह से रेल परियोजनाओं के सुरंगों का निर्माण, बांधों का निर्माण, पर्यटक स्थलों पर बढती भीड और अनियंत्रत यातायात व्यवस्था भी जिम्मेदार है। इस तरह के विकास ने पिछले एक दो दशक से पहाड़ों को बदतर स्थिति में ला दिया है।
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