जयपुर , दिसंबर 12 -- राजस्थान साहित्य अकादमी पिंकसिटी प्रेस क्लब और पीपुल्स मीडिया थिएटर के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को यहां तीन दिवसीय पिंकसिटी साहित्य महोत्सव का शुभारंभ हुआ।
उद्घाटन सत्र में शब्द, कला और चिंतन की गरिमा एक साथ उपस्थित थी। वरिष्ठ कवि, लेखक और गांधीवादी चिंतक नंदकिशोर आचार्य ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का आग़ाज़ किया और अपने संबोधन में कहा कि हिंदी में साहित्यिक महोत्सव आयोजित करना स्वयं में एक सांस्कृतिक दायित्व है। एक ऐसा दायित्व जो आज के समय में और भी महत्वपूर्ण हो गया है। उन्होंने कहा कि साहित्य मनुष्य की स्वयं को परखने की प्रक्रिया है, आत्म की खोज ही साहित्य का मूल बीज है।
उन्होंने समाज में साहित्य के प्रति उदासीनता पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि लेखक सबसे पहले अपने भीतर की आवाज़ को सुनने के लिये अपनी खातिर लिखता है। यदि मानव जीवन में संवेदना और आत्मीयता को बचाए रखना है तो साहित्य और कलाएं ही वह राह हैं जिन पर चलकर मनुष्य अपने आत्म से परे जाकर सोच सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने साहित्यिक आयोजनों को समाज की जीवन्तता का परिचायक बताया। उन्होंने कहा कि साहित्य के साथ अन्य कलाओं को जोड़ना इस आयोजन की मौलिक उपलब्धि है। उन्होंने साहित्यिक परिदृश्य में फैलती गुटबाज़ी और एक तरह के जातिवाद पर खेद व्यक्त करते हुए कहा कि वैचारिक भिन्नता के बावजूद भी श्रेष्ठ लेखन संभव है और यहीं से नए स्वर उत्पन्न होते हैं।
फर्स्ट इंडिया न्यूज़ के सीईओ पवन अरोड़ा ने साहित्य को समाज की आत्मा बताते हुए कहा कि विचारों के टकराव से ही बौद्धिक क्रांति जन्म लेती है। शब्द मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति हैं, और यह महोत्सव उसी शक्ति की पहचान का अवसर है। उन्होंने कहा कि मनुष्य की आत्मा भावनाओं से पुष्ट होती है, तकनीक से नहीं और पत्रकारिता के क्षेत्र में युवाओं के लिए साहित्य एक नया दृष्टिकोण और आलोचनात्मक विवेक विकसित करता है।
प्रसिद्ध कथक गुरु प्रेरणा श्रीमाली ने कला और संस्कृति के क्षरण पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज हम ऐसे दौर में हैं जहां नैतिक मूल्य लगभग विलुप्त हो रहे हैं और धैर्य क्षीण होता जा रहा है। सभ्यताएं स्थायी हो सकती हैं, पर संस्कृति निरंतर परिवर्तनशील और गतिशील रहती है और उसके मूल में कला, लोक परंपराएं और चिंतन ही होते हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान में शास्त्रीय कलाओं का स्थान लगातार सिमटता जा रहा है, जबकि कला ही जीवन की दृष्टि बदलने का सामर्थ्य रखती है।
महोत्सव के निदेशक अशोक राही ने कहा कि मनुष्य का सबसे बड़ा आविष्कार भाषा है पर आज के समय में सबसे तेज़ी से नष्ट होता तत्व विचार है। जब समाज साहित्य से विमुख हो जाता है, तो उसका पतन निश्चित हो जाता है और इसी पर गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध छायाकार सुधीर कासलीवाल ने कहा कि रंगमंच और साहित्य हमारी आत्मा के दर्पण हैं। प्रेस क्लब के अध्यक्ष मुकेश मीणा ने इस आयोजन को 'साहित्य का महाकुंभ' कहा।
हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित