नयी दिल्ली , अक्टूबर 09 -- उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा न्यायिक अधिकारी के तौर पर सेवा में आने से पहले बार में सात साल की प्रैक्टिस पूरी करने वाले व्यक्ति जिला न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के पात्र होंगे। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया।

पीठ ने राज्य सरकारों को सेवारत अभ्यर्थियों के लिए पात्रता निर्दिष्ट करने वाले नियम बनाने का निर्देश दिया, साथ ही न्यायिक अधिकारियों और अधिवक्ताओं के रूप में संयुक्त रूप से सात साल का अनुभव रखने वालों को जिला न्यायाधीशों के पद पर सीधी भर्ती के लिए अर्हता प्राप्त करने की अनुमति भी दी।

शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि चयन के समय पात्रता का आकलन किया जायेगा।

पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, "समान अवसर बनाये रखने के लिए, जिला न्यायाधीश या अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में आवेदन करने की न्यूनतम आयु आवेदन की तिथि को 35 वर्ष होगी।"अदालत ने इस दावे को खारिज कर दिया कि अनुच्छेद 233(2) सीधी भर्ती के लिए 25 फीसदी कोटा आरक्षित करता है।

मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि न्यायिक सेवा के सदस्यों के साथ अन्याय हुआ है। पीठ ने स्पष्ट किया कि उसका निर्णय, निर्णय की तिथि से लागू होगा, सिवाय उन मामलों के जहां उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश पारित किये हों।पीठ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वैधानिक व्याख्या प्रासंगिक होनी चाहिए, न कि अलग-थलग।

शीर्ष अदालत ने कहा, "संविधान के अनुच्छेद 233 का समग्र अध्ययन दर्शाता है कि खंड 2 सेवारत उम्मीदवारों के लिए योग्यतायें निर्दिष्ट करता है, लेकिन यह अन्य लोगों के लिए योग्यताओं का विवरण नहीं देता है। इसके पहले भाग के आशय को समझने के लिए पूरे अनुच्छेद को एक साथ पढ़ा जाना चाहिए। व्याख्या लचीली और उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए, कठोर नहीं। ऐसी कोई भी व्याख्या जो प्रतिस्पर्धा को अनुचित रूप से सीमित करती है, उसे अस्वीकार कर दिया जायेगा।"अदालत का यह निर्णय 12 अगस्त, 2025 को इस सवाल पर दिये गये संदर्भ पर आया कि क्या सात वर्षों तक अधिवक्ता के रूप में अभ्यास करने के बाद अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में चयनित न्यायिक अधिकारी भी जिला न्यायाधीशों के पद पर सीधी भर्ती के लिए आवेदन कर सकते हैं, जो केवल अनुभवी बार सदस्यों के लिए उपलब्ध है।

धीरज मोर बनाम माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय (2020) मामले में 19 फ़रवरी, 2020 के फ़ैसले पर पुनर्विचार की मांग करते हुए कई याचिकायें दायर की गयीं थी।

तीन न्यायाधीशों की पीठ ने तब यह निर्णय दिया था कि राज्य न्यायिक सेवा के सदस्यों को पदोन्नति या सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से ज़िला न्यायाधीश नियुक्त किया जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने तब यह निर्णय दिया था कि संविधान के अनुच्छेद 233(2) के अंतर्गत सात वर्षों के अनुभव वाले किसी अधिवक्ता को सीधी भर्ती द्वारा ज़िला न्यायाधीश नियुक्त किया जा सकता है, बशर्ते वह पहले से ही संघ या राज्य न्यायिक सेवा में न हो।

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