नयी दिल्ली , नवंबर 10 -- उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को इस चिंताजनक प्रवृत्ति पर कड़ी आपत्ति जताई कि जब न्यायिक आदेश उनके पक्ष में नहीं आते हैं, तो वादी न्यायाधीशों पर अपमानजनक और निराधार आरोप लगाते हैं।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन की पीठ ने एन. पेड्डी राजू और दो वकीलों, रितेश पाटिल और नितिन मेश्राम, के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। तीनों ने एक मामले को दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका में तेलंगाना उच्च न्यायालय की न्यायाधीश, न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य के खिलाफ गंभीर और मानहानिकारक आरोप लगाए थे, जिसके बाद अवमानना की कार्यवाही शुरू की गई थी।
पीठ ने कहा, "हाल के दिनों में हमने देखा है कि जब कोई न्यायाधीश अनुकूल आदेश पारित नहीं करता है, तो उसके खिलाफ अपमानजनक और निंदनीय आरोप लगाने का चलन बढ़ रहा है। इस तरह की प्रथा की कड़ी निंदा की जानी चाहिए।"अधिवक्ताओं की भूमिका और ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देते हुए न्यायालय ने दोहराया कि न्यायालय के अधिकारी होने के नाते वकीलों का कर्तव्य है कि वे न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखें।
हालांकि, राजू और दोनों वकीलों द्वारा बिना शर्त माफ़ी मांगने के बाद, जिसे न्यायमूर्ति भट्टाचार्य ने स्वीकार कर लिया, पीठ ने अवमानना की कार्यवाही बंद करने का फ़ैसला किया।
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