जालौन , नवंबर 14 -- उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड का जालौन जिला जल संरक्षण और जनभागीदारी का उदाहरण बन चुका है। जिलाधिकारी राजेश कुमार पांडे के नेतृत्व में प्रशासनिक दूरदृष्टि और सामुदायिक सहभागिता ने वर्षाें से असंभव माने जा रहे नून नदी का पुनर्जीवन कर दिखाया है। हजारों किसानों की जीवनरेखा रही यह नदी अब फिर से प्रवाहित हो रही है और ग्रामीण जीवन में नई ऊर्जा भर रही है।
श्री पांडे को इस नेक काज के लिये केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के राष्ट्रीय जल मिशन द्वारा 18 नवंबर को जल संचय जन भागीदारी 1.0 अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। उन्हे यह पुरस्कार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों विज्ञान भवन, नई दिल्ली में मिलेगा।
दरअसल, नून नदी का उद्गम कोंच ब्लॉक के सतोह गांव से होता है। यह नदी महेवा, कोंच, डकोर और कदौरा ब्लॉक के 47 गांवों से होकर लगभग 82 किलोमीटर का सफर तय करती हुई शेखपुर गूढ़ा गांव के पास यमुना नदी में मिलती है। समय के साथ मानवीय लापरवाही, अतिक्रमण और प्राकृतिक असंतुलन के कारण नदी का अस्तित्व संकट में आ गया था। 2014 की भीषण बाढ़ के बाद नदी का प्रवाह रुकने लगा, किनारों पर अतिक्रमण बढ़ा और धीरे-धीरे यह नदी एक नाले में तब्दील हो गई। कई स्थानों पर किसानों ने नदी की भूमि पर खेती शुरू कर दी, जिससे इसका स्वरूप और बिगड़ गया।
वर्ष 2023 में तत्कालीन जिलाधिकारी चांदनी सिंह ने नून नदी के पुनर्जीवन की दिशा में पहल की थी। इस अभियान को वर्तमान जिलाधिकारी राजेश कुमार पांडे ने नई गति और जनसहयोग के साथ आगे बढ़ाया। उन्होंने "जल संचयन जन भागीदारी अभियान" की शुरुआत की, जिसके तहत प्रशासन ने न केवल नदी की सफाई और गहरीकरण कराया बल्कि स्थानीय लोगों, ग्राम प्रधानों और किसानों को इस मुहिम से जोड़ा।
13 अप्रैल 2025 को उत्तर प्रदेश के जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह ने सतोह गांव में फावड़ा चलाकर नून नदी पुनरुद्धार कार्य का शुभारंभ किया। करीब डेढ़ महीने तक 2000 से अधिक श्रमिकों और ग्रामीणों ने लगातार मेहनत की। परिणामस्वरूप नदी में फिर से पानी बहने लगा और बरसात के मौसम में उसने अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त कर लिया। आज यह नदी एक बार फिर से 47 गांवों के हजारों किसानों के लिए सिंचाई का प्रमुख स्रोत बन चुकी है।
जिलाधिकारी राजेश कुमार पांडे ने बताया कि ग्राम स्तर पर जन चौपालों के माध्यम से लोगों को जल संरक्षण और पुनर्भरण के महत्व के प्रति जागरूक किया गया। उन्होंने कहा कि "जब जनता जुड़ती है तो जल भी लौट आता है," और यही सोच इस अभियान की सफलता की कुंजी बनी।
"सुशासन सप्ताह" के अंतर्गत 23 दिसंबर 2024 को उरई के राजकीय मेडिकल कॉलेज ऑडिटोरियम में "वाटर समिट" का आयोजन किया गया। इसकी थीम थी - जल संचयन जन भागीदारी। इस कार्यक्रम का उद्देश्य जिले में जल संरक्षण की दिशा में किए गए नवाचारों को साझा करना और सामुदायिक जागरूकता को बढ़ाना था।
कार्यक्रम में जलशक्ति मंत्रालय की अपर सचिव एवं मिशन निदेशक अर्चना वर्मा, उत्तर प्रदेश जल निगम के प्रबंध निदेशक राजशेखर, झांसी मंडलायुक्त विमल कुमार दुबे, पद्मश्री उमाशंकर पांडे, और अन्य जनप्रतिनिधियों ने भाग लिया। कार्यक्रम के दौरान पद्मश्री उमाशंकर पांडे ने कहा कि "जल संरक्षण केवल सरकारी जिम्मेदारी नहीं, यह समाज का भी कर्तव्य है।"वाटर समिट का सबसे प्रभावशाली हिस्सा रहा "पानी की पाठशाला"। इसके तहत बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को जल संरक्षण की तकनीकों, वर्षा जल संचयन, और जल के विवेकपूर्ण उपयोग के प्रति प्रशिक्षित किया गया। इस अभियान में जिले के 2260 प्राथमिक विद्यालयों और 278 मिडिल स्कूलों के 2.45 लाख छात्र, तथा 574 ग्राम पंचायतों के 5.07 लाख ग्रामीणों कुल 7.52 लाख प्रतिभागियों ने "जल शपथ" ली।
शपथ में सभी ने जल की हर बूंद को बचाने, स्रोतों को संरक्षित करने और पानी की बर्बादी रोकने का संकल्प लिया। यह सामूहिक जागरूकता जालौन में "जन भागीदारी से जल संरक्षण" की अवधारणा को साकार करती है। जालौन प्रशासन ने केवल जनजागरण ही नहीं किया, बल्कि ठोस भौतिक कार्यों से भी जल संचयन की नींव मजबूत की।
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