चेन्नई , नवंबर 02 -- तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई का ऐतिहासिक सेंट जॉर्ज कैथेड्रल चर्च अब अपने नए रूप में श्रद्धालुओं के लिए फिर से खुल गया है।

साल वर्ष 1815 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में बना यह चर्च 'नियो-क्लासिकल शैली' बनाया गया था। तब से यह गिरजाघर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है बल्कि भारत की औपनिवेशिक वास्तुकला का भी एक अनुपम मिसाल है।

इस चर्च को सफेद संगमरमर से बनाया गया था और इसके खूबसूरत कोरिंथियन खंभे, और ऊँचा शिखर सदियों से चेन्नई की सांस्कृतिक आत्मा का हिस्सा रहे हैं। यह 'चर्च ऑफ साउथ इंडिया' का मुख्यालय और 'मद्रास के बिशप' की सीट भी है।

दरअसल समय की मार, मौसम और प्रदूषण के असर से यह ऐतिहासिक धरोहर जर्जर हो चुकी थी। दीवारों में दरारें, नमी से लकड़ी का खराब होना, लोहे में जंग और कमजोर होती जा रही छत इसके बचे रहने को ही खतरे में डाल रहे थे। इसके अलावा फैलता शहर और गाड़ियों के कंपन से इमारत की बुनियाद पर भी असर पड़ रहा था।

इसे देखते हुए तय किया गया कि इसे नया रूप देना चाहिए। तब एक योजना पर अमल शुरू किया गया और इसके कर्णधार बने कर्नल डेविड देवासहायम और प्रोफेसर अरुण मेनन।

इन लोगों ने यह ध्यान रखा कि इमारत जिस स्वरूप में बनी थी उसे बरकरार रखा जाए। इसलिए इसकी चूने गारे से ही मरम्मत करने का फैसला किया गया। सागौन की लकड़ी मंगायी गयी और लोहे की चीजों पर रंग रोगन करके चमकाया गया। इस इमारत में लगे शीशों, नाम वाली पट्टिकाएं, वेदी को साफ किया गया। इमारत में रोशनी आने के लिए कुछ परिवर्तन इस तरह किए गए ताकि इस इमारत की सुंदरता बरकरार रहे।

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