गांधीनगर, सितंबर 28 -- गुजरात और महाराष्ट्र के राज्यपाल आचार्य देवव्रत की अध्यक्षता और मुख्यमंत्री भूपेन्द्रभाई पटेल की उपस्थिति में गांधीनगर के कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ विचार मंच द्वारा रविवार को 'आचार्य तुलसी सम्मान समारोह' का आयोजन किया गया।

श्री देवव्रत के करकमलों से इस अवसर पर गुजरात के गांधीनगर में इंडिया टीवी के प्रधान संपादक और पद्मभूषण से सम्मानित रजत शर्मा को उनके स्वच्छ, संयमित और सकारात्मक पत्रकारिता योगदान के लिए 16वें 'आचार्य तुलसी सम्मान' से सम्मानित किया गया। उन्हें प्रशस्ति पत्र, मोमेंटो और एक लाख रुपये का पुरस्कार प्रदान किया गया।

श्री रजत शर्मा ने घोषणा की कि वह यह पुरस्कार राशि बच्चों की शिक्षा के लिए कार्यरत एनडीटीवी ट्रस्ट को दान करेंगे।

राज्यपाल ने कहा कि सृष्टि के जो नियम भगवान ने बनाए हैं, उनका उल्लंघन करने वाला व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता। कार्य और कारण के बीच अविभाज्य संबंध है और बिना कारण कोई कार्य नहीं होता। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर स्वामी द्वारा स्थापित जैन परंपरा की मुख्य आधारशिला अहिंसा है। जहां हिंसा है, वहां दुःख है और जहां अहिंसा है, वहां आनंद ही आनंद है। सत्य, अहिंसा, संयम, अपरिग्रह और अस्तेय को अपने जीवन में अपनाने वाला व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में शांति और सुख का अनुभव करता है, जबकि इन सिद्धांतों को त्यागने से जीवन में दुःखों का आरंभ होता है और यही इस संसार के अविनाशी सिद्धांत हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे आने से पहले भी यह दुनिया थी और हमारे जाने के बाद भी रहेगी। जो हमारा नहीं है, उसे छोड़ देना ही ऋषि-मुनियों की परंपरा है। कोई भी प्राणी दुःख नहीं चाहता। हर जीव केवल सुख की इच्छा रखता है। लेकिन अनुकूलता और प्रतिकूलता के संघर्ष से ही दुःख उत्पन्न होता है। अनुकूल परिस्थिति सुख का कारण है, जबकि इच्छा के विपरीत परिणाम दुःख का कारण बनता है। यह शाश्वत सिद्धांत हमें ऋषि-मुनियों और जैन संतों से प्राप्त हुए हैं।

उन्होंने शास्त्रों का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस कार्य को करते हुए भय, लज्जा या संदेह उत्पन्न हो, वह कार्य कभी नहीं करना चाहिए, यही शास्त्रों का अमूल्य मार्गदर्शन है। आचार्य श्री तुलसी ने इन सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार के लिए जीवनभर प्रयास किए और आज आचार्य महाश्रमण भी समाजहित में निरंतर कार्य कर रहे हैं। संतों की यह परंपरा हमें विचारों की अनमोल पूंजी प्रदान करती है, जिससे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है।

राज्यपाल ने पद्मभूषण और तुलसी सम्मान से सम्मानित श्री रजत शर्मा के बारे में कहा कि संतों की तरह पत्रकारिता भी समाज निर्माण का एक पवित्र कार्य है। पत्रकारिता का सच्चा अर्थ है निडरता, सत्य और निष्ठा। श्री शर्मा अपने निडर और निष्पक्ष पत्रकारिता के माध्यम से समाज में सकारात्मकता फैला रहे हैं और देशभर के अनेक लोगों को प्रेरणा दे रहे हैं। उनका सकारात्मक चिंतन और जीवन की सादगी पत्रकारिता के गौरव और स्वाभिमान को नई ऊंचाई प्रदान करती है। उनकी कर्मनिष्ठा और अथक परिश्रम ईश्वर की विशेष कृपा का प्रतीक है।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उल्लेख करते हुए कहा कि महापुरुष दुनिया के बनाए हुए रास्तों पर नहीं चलते, बल्कि कर्तव्यनिष्ठा, कर्मयोग और तपस्या से नया मार्ग स्थापित करते हैं। वह वास्तव में परमात्मा द्वारा भेजे गए समाज के दूत होते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार श्री रजत शर्मा ने अपने सम्मान स्वीकार सम्बोधन में कहा कि आचार्य श्री महाश्रमणजी ने मानवता की सेवा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया है। उन्होंने समाज के कल्याण हेतु 60,000 किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा की है और उनका व्यक्तित्व अत्यंत विलक्षण है।

श्री शर्मा ने राज्यपाल आचार्य देवव्रत को भारत के "प्राकृतिक खेती के कृषिऋषि" के रूप में संबोधित किया। उन्होंने कहा कि हर सम्मान अपने साथ नई जिम्मेदारी का बोध कराता है। उन्होंने कहा कि यदि कभी मेरे कदम कर्तव्यपथ से डगमगाए, तो यह सम्मान मुझे किसी भी बुरे कार्य से रोकने की प्रेरणा देगा।

यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछले 20 वर्षों से आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ विचार मंच अपने गुरु के आदर्शों को आगे बढ़ाने और उनके विचारों के प्रचार-प्रसार में कार्यरत है। इस मंच के माध्यम से अब तक अनेक साहित्यकारों, पत्रकारों और समाजसेवियों को सम्मानित किया जा चुका है।

सम्मानित व्यक्तियों में विश्वनाथ सचदेव, डॉ. मनोहर त्रिपाठी, नंदकिशोर नौटियाल, गुलाब कोठारी, रमेश अग्रवाल, जगदीश चंद्र, राज्यसभा उपसभापति हरिवंश, डॉ. कुमारपाल देसाई, दीक्षित सोनी और मनीष बरडिया जैसे प्रतिष्ठित मीडिया व्यक्तित्व शामिल हैं।

आचार्य महाश्रमण ने इस अवसर पर आशीर्वचन देते हुए कहा कि धर्म और अध्यात्म की शक्ति अत्यंत विशिष्ट शक्ति होती है। जिनके जीवन में अहिंसा, तप और संयम है, वहीं धर्म है और उनका सदा मंगल होता है। उन्होंने कहा कि समाज को सही दिशा दिखाने में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। आज समाज से बुराइयों को दूर करने के लिए सकारात्मक पत्रकारिता की अत्यंत आवश्यकता है।

इस अवसर पर नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव ने अपने विचार व्यक्त किए और आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ विचार मंच के अध्यक्ष श्री राजकुमार पुगल्या ने अतिथियों का स्वागत किया। एक गुरु- एक विधान" के सिद्धांत पर चलते हुए आज 700 से अधिक तेरापंथ जैन साधु- साध्वियों के गुरु आचार्य महाश्रमणजी हैं। तेरापंथ जैन समाज के अग्रणी सदस्य, सेवानिवृत्त उप सूचना निदेशक पंकज मोदी, बड़ी संख्या में साधु-साध्वियां और नागरिक उपस्थित थे।

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