नयी दिल्ली, नवंबर 14 -- एक अंतर्राष्ट्रीय शोध में यह दावा किया गया है कि नयी भाषा सीखने से मस्तिष्क की कोशिकाएं लंबे समय तक स्वस्थ रहती हैं और उनके बूढ़ी होने की रफ्तार में कमी आ जाती है। इस शाेध में बताया गया है कि एक से ज्यादा भाषाएं सीखने से 'कोग्निटिव एजिंग 'यानी दिमाग की संज्ञानात्मक उम्र का बढ़ना धीमा हो जाता है।

वैज्ञानिक शोध और समाचारों से जुड़ी अंग्रेजी वेबसाइट नेचर डॉट कॉम में प्रकाशित केटी कवानाघ के एक लेख में यह बताया गया है कि 80,000 से ज़्यादा लोगों पर किये गये शोध में यह पाया गया है कि कई भाषायें बोलने से मस्तिष्क की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। जिससे संज्ञानात्मक गिरावट में कमी आने में मदद मिल सकती है। अपनी मातृभाषा से अलग कोई नयी भाषा सीखना कुछ लोगों के लिए अपेक्षाकृत आसान रहता है, तो कुछ अन्य के लिये तो यह दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती की तरह होता है। ऐसे लोग यदि एक नयी भाषा सीखना शुरू कर दें तो उनके दिमाग की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी हो सकती है।

10 नवंबर को प्रकाशित इस शाेध के हवाले से कहा गया है कि एक से ज्यादा भाषाएं बोलने वाले लोगों में 'बायोलॉजिकल एज 'यानी जैविक आयु के बढ़ने के लक्षण दिखने की संभावना उन लोगों की तुलना में केवल 50 प्रतिशत होती है, जो सिर्फ़ एक भाषा बोलते हैं।

चिली के सैंटियागो स्थित एडोल्फो इबानेज़ विश्वविद्यालय के न्यूरोसाइंटिस्ट और इस अध्ययन के सह-लेखक अगस्टिन इबानेज़ कहते हैं, " उम्र बढ़ने के विषय पर हो रहे शोधों में सबसे बड़ी बाधा में से एक को हम दूर करना चाहते थे और वह यह है कि क्या एक से ज्यादा भाषाएं बोलने से दिमाग की कोशिकाओं की आयु के बढ़ने की गति को धीमा किया जा सकता है।" इस विषय पर पहले जो शोध किए गए हैं, उनमें यह बात निकलकर सामने आयी थी कि कई भाषाएं बोलने से स्मृति और ध्यान जैसी संज्ञानात्मक क्रियाओं की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। जिससे उम्र बढ़ने के साथ दिमाग की क्षमता में सुधार होता है।

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