नागपुर , दो अक्टूबर (वार्ता) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने गुरुवार को 'राष्टीय सुरक्षा' और आत्म निर्भरता को मजबूत करने करने की आवश्यकता पर बल देते हुए सामाजिक सद्भाव को राष्ट्रीय एकता का मुख्य कारक बताया।

संघ की स्थापना के 100 साल पूरे होने के अवसर पर यहां विजयादशमी समरोह में अपने उद्बोधन में डॉ भागवत ने सामाजिक सद्भाव को राष्ट्र के उत्थान का मुख्य कारक बताते हुए इसके लिए जनजागृति फैलाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने भारत के पड़ोसी देशों में हिंसक आंदोलनों को चिंताजनक बताते हुए सावधान किया कि कुछ ताकतें भारत को भी इससे ग्रसित करने की सोच रखती हैं। संघ प्रमुख ने हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं और अतिवृष्टि-अल्पवृष्टि की घटनाओं का उल्लेख करते हुए अपने संबोधन में संतुलित जीवन पद्धति अपनाए जाने की जरूरत को भी रेखांकित किया।

संघ के इस वर्षिक कार्यक्रम में इस बार पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मुख्य अतिथि थे।

संघ प्रमुख ने पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद मई में आतंकवाद के विरुद्ध भारत की सैन्य कार्रवाई के संदर्भ में देश की सुरक्षा के प्रति अधिक सजग रहने और सामर्थ्य बढाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हाल में विभिन्न देशों के नीतिगत क्रियाकलापों से यह पहचान हो चुकी है कि दुनिया में कौन-कौन से देश भारत के मित्र हैं और उनकी मित्रता कहां तक है।

संघ प्रमुख ने कहा कि पहलगाम में सीमापार से आये आतंकियों के कृत्य से " सम्पूर्ण भारतवर्ष में दुःख और क्रोध की ज्वाला भड़की। सरकार ने योजना बनाकर मई मास में इसका पुरजोर उत्तर दिया। इस कालावधि में देश के नेतृत्व की दृढ़ता तथा हमारी सेना के पराक्रम तथा युद्ध कौशल के साथ-साथ समाज की दृढ़ता एवं एकता का सुखद दृश्य हमने देखा। "डॉ. भागवत ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर जोर देते हुए कहा , " अन्य देशों से मित्रता की नीति व भाव रखते हुए भी हमें अपनी सुरक्षा के विषय में अधिकाधिक सजग रहने और अपना सामर्थ्य बढ़ाते रहने की आवश्यकता है। नीतिगत क्रियाकलापों से विश्व के अनेक देशों में से हमारे मित्र कौन-कौन और कहाँ तक हैं, इसकी परीक्षा भी हो गयी।"उन्होंने स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की नीति पर बल देते हुए कहा कि अमेरिका ने अपने हित को आधार बनाकर जो आयात शुल्क नीति चलायी है, उसके कारण हमें भी कुछ बातों पर पुनर्विचार करना पड़ेगा।

उन्होंने कहा, ' विश्व परस्पर निर्भरता पर जीता है, किन्तु यह परस्पर निर्भरता हमारी मजबूरी न बने, इसके लिए हमें आत्मनिर्भर बनना होगा क्योंकि स्वदेशी तथा स्वावलम्बन का कोई पर्याय नहीं है।"डॉ. भागवत ने भारत के पड़ोसी देशों की अराजक स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि श्रीलंका, बांग्लादेश और हाल ही में नेपाल में जिस प्रकार जन-आक्रोश के हिंसक प्रदर्शन से सत्ता का परिवर्तन हुआ ..भारतवर्ष में भी इस प्रकार के उपद्रवों को चाहने वाली शक्तियां अपने देश-दुनिया में सक्रिय हैं, यह हमारे लिए चिन्ताजनक है।"सरसंघचालक ने कहा कि देश के अन्दर उग्रवादी नक्सली गतिविधियों पर शासन तथा प्रशासन की दृढ़ कार्रवाई से काफी नियंत्रण हुआहै। कुछ क्षेत्रों में नक्सलियों के पनपने का मूल कारण वहाँ शोषण व अन्याय, विकास का अभाव तथा शासन-प्रशासन में इन सब बातों के प्रति संवेदना का अभाव था।

उन्होंने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में न्याय, विकास, सद्भावना, संवेदना तथा सामंजस्य स्थापित करने के लिए शासन-प्रशासन की ओर से कोई व्यापक योजना लागू करने की आवश्यकता भी बतायी।

डॉ.भागवत ने सामाजिक एकता के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि किसी भी देश के उत्थान में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक उस देश के समाज की एकता है। उन्होंने सामाजिक सद्भाव के लिए व्यापक समाजिक जागृति की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि " नियम पालन, व्यवस्था पालन करना व सद्भावपूर्वक व्यवहार करना लोगों का स्वभाव बनना चाहिए।"संघ प्रमुख ने कहा कि छोटी-बड़ी बातों पर या केवल मन में सन्देह है इसलिए, कानून हाथ में लेकर रास्तों पर निकल आना, गुंडागर्दी, हिंसा करने की प्रवृत्ति ठीक नहीं है। मन में प्रतिक्रिया रखकर अथवा किसी समुदाय विशेष को उकसाने के लिए अपना शक्ति प्रदर्शन करना, ऐसी घटनाओं को योजनापूर्वक कराया जाता है। उनके चंगुल में फंसने का परिणाम, तात्कालिक और दीर्घकालिक, दोनों दृष्टि से ठीक नहीं है। इन प्रवृत्तियों की रोकथाम आवश्यक है।

डॉक्टर आम्बेडकर को उद्धरित करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय एकता का आधार इसकी "अन्तर्निहित सांस्कृतिक एकता" है। यह प्राचीन समय से चलती आ रही भारत की विशेषता है जो सर्व समावेशक है।

इस संबोधन में उन्होंने गत वर्ष प्रयागराज में सम्पन्न महाकुम्भ का भी उल्लेख किया और कहा कि श्रद्धालुओं की संख्या के साथ ही उत्तम व्यवस्था के भी सारे कीर्तिमान तोड़कर इस पर्व ने विश्व के समक्ष एक उदाहरण पेश किया। इसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण भारत में श्रद्धा व एकता की लहर को अनुभव किया जा सकता है।

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