जोधपुर , अक्टूबर 04 -- राजस्थान के चिकित्सा मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर ने खांसी की दवा गुणवत्ता एवं शिकायत के मामले में स्पष्ट करते हुए बताया है कि भरतपुर, सीकर एवं अन्य स्थानों पर मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना में आपूर्ति की जाने वाली औषधि डेक्स्ट्रोमेथोरफन दवा की गुणवत्ता का मामला सामने आया लेकिन तीन मौत के प्रकरणों की प्राथमिक जांच में चिकित्सक द्वारा यह दवा लिखे जाने एवं दिए जाने की पुष्टि नहीं हुई है।
श्री खींवसर ने शनिवार को यहां प्रेस वार्ता में बताया कि सीकर जिले में सीकर जिले में हाथीदेह गांव के तीन साल के किट्टू एवं टिंकू को पीएचसी में उपचार के लिए लाया गया था जहां इन्हें डेक्सट्रोमैथोर्फन दवा दिए जाने की पुष्टि हुई है और दवा के सेवन से ये बीमार हुए लेकिन अब स्वस्थ हैं। इस मामले में पीएचसी हाथीदेह की चिकित्सक डा पलक कूलवाल एवं फार्मासिस्ट पप्पू सोनी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। इसके अलावा विभिन्न दवाओं में साल्ट की मात्रा के आधार पर मानक निर्धारण की प्रक्रिया को प्रभावित करने के मामले में सख्त कार्यवाही करते हुए औषधि नियंत्रक राजाराम शर्मा को भी निलंबित कर दिया गया।
उन्होंने बताया कि सबसे पहले गत 28 सितंबर को औषधि डेक्स्ट्रोमेथोरन के बैच नम्बर केएल-25/147 की भरतपुर से एवं 29 सितंबर को जिला सीकर से उक्त औषधि के बैच संख्या केएल-25/148 के संबंध में समाचार पत्रों एवं विभागीय अधिकारियों के माध्यम से शिकायत प्राप्त हुई। समाचार पत्रों में प्रकाशित जानकारी के अनुसार सिरप का मरीजों द्वारा उपयोग करने पर उल्टी, नींद, घबराहट, चक्कर, बेचैनी, बेहोशी आदि की शिकायत सामने आई।
श्री खींवसर ने बताया कि शिकायत प्राप्त होने पर विभाग ने तत्काल प्रभाव से शिकायती बैचों के वितरण एवं उपयोग पर रोक लगा दी। साथ ही इन बैचों के वैधानिक नमूने लेकर गुणवत्ता जांच के लिए राजकीय औषधि परीक्षण प्रयोगशाला भिजवाया गया। इसी दौरान भरतपुर, सीकर एवं झुन्झुनूं जिलों में बच्चों के खांसी की दवा से बीमार एवं तीन प्रकरणों में मृत्यु होने की खबरें सामने आई। जिन बच्चों की मृत्यु हुई है उनमें सीकर जिले के खौरी ब्राहम्णान के नित्यांश शर्मा (04) की जांच करने पर पाया गया कि बालक को गत सात जुलाई को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, चिराना में दिखाया गया था। जो उपचार बच्चे को दिया गया, उसमें इस दवा का उल्लेख नहीं है। उसके बाद बच्चे को किसी भी चिकित्सालय में नहीं दिखाया गया और बच्चे की 29 सितंबर को मृत्यु हो गई।
उन्होंने बताया कि इसी तरह भरतपुर जिल में मलाह गांव के सम्राट की मृत्यु के प्रकरण की जांच में पाया गया है कि सम्राट को निमोनिया था। जिसका शुरुआत में उप स्वास्थ्य केन्द्र मलाह, ब्लॉक सेवर में एएनएम एवं सीएचओ द्वारा अपने स्तर पर उपचार किया गया। तत्पश्चात् उसे जिला अस्पताल भरतपुर एवं जेके लोन अस्पताल जयपुर रैफर किया गया जहां उसकी गत 22 सितंबर को मृत्यु हो गई। इसे किसी भी राजकीय चिकित्सालय के स्तर पर डेक्सट्रोमैथोफेन एचबीआर दिये जाने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। जेके लोन अस्पताल से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार सम्राट की मौत का कारण एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिण्ड्रोम बताया गया है।
इसी प्रकार भरतपुर के लुहासा गांव के तीर्थराज के मामले में जांच करने पर पाया गया है कि तीर्थराज को खांसी एवं बुखार संबधी बीमारी की तीन दिन की हिस्ट्री लेकर परिजन उप जिला चिकित्सालय वैर में दिखाने आए थे। जिसको चिकित्सक द्वारा सिरप एमोक्सीसिल्लीन, सिरप एन्टीकोल्ड एवं एम्ब्रोक्सोल कफ सिरप दी गई एवं परिजनों को दवा की मात्रा एवं समय के बारे में भी परामर्श दिया गया। उसी दिन पुन: उपचार के लिए आने पर गंभीर स्थिति पाए जाने पर जिला अस्पताल भरतपुर के लिए रैफर किया गया। इसके बाद जेकेलोन अस्पताल जयपुर भेज दिया गया जहां 27 सितंबर को बालक की मृत्यु हो गई। बालक को चिकित्सालय के स्तर पर डेक्सट्रोमैथोर्फन एचबीआर दिये जाने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। जेके लोन से प्राप्त जानकारी के अनुसार तीर्थराज की मौत एक्यूट एनसिफलाइटिस के कारण होना बताया गया है।
श्री खींवसर ने बताया कि तीनों ही प्रकरणों में जांच में चिकित्सक द्वारा डेक्सट्रोमैथोर्फन एचबीआर दवा लिखे जाने एवं दिए जाने की पुष्टि प्राथमिक जांच में नहीं हुई है। उन्होंने बताया कि भरतपुर जिले के कलसाडा गांव में गगन के बीमार होने के मामला सामने आया कि बच्चे के पिता को दी गई दवा सेवन करने से बच्चा बीमार हुआ, जो अब स्वस्थ है।
उन्होंने बताया कि कायसन फार्मा की डेक्सट्रोमैथोर्फन दवा के जिन बैचों के नमूने लिए गए थे, ड्रग टैस्टिंग लैब से आज छह सैम्पल की रिपार्ट आई है, जिसमें सभी सैम्पल स्टैण्डर्ड क्वालिटी के पाये गये गए हैं। इस दवा के संदर्भित बैचों से एक लाख तैंतीस हजार डोज वितरित की जा चुकी हैं और कहीं पर भी अभी तक कोई शिकायत या विपरीत रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है।
उन्होंने बताया कि कायसन फार्मा, जयपुर जो डेक्सट्रोमैथोरपन दवा की सप्लाई कर रही है। इस कंपनी के 2012 से अब तक 10 हजार 119 सैंपल लिए गए हैं। इनमें से 42 सैंपल अमानक पाए गए हैं। इनमें से कोविड के समय एक दवा के 39 सैम्पल फैल हुए थे। इसके अलावा 3 और सैम्पल अब तक अमानक पाए गए हैं। फिर भी एहतियातन विभाग ने इस कंपनी द्वारा सप्लाई की जा रही सभी 19 प्रकार की दवाओं के उपयोग एवं वितरण को अग्रिम आदेशों तक रोक दिया है।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में एडवाइजरी जारी कर चार साल से छोटे बच्चों को डेक्स्ट्रोमैथोरपन दवा नहीं देने के लिए कहा था। इसके क्रम में राज्य सरकार ने भी एडवाइजरी जारी की है। शुक्रवार को ड्रग कंट्रोलर आफ इंडिया ने पुन: एक एडवाइजरी जारी कर कहा है कि सामान्यत:पांच साल से बड़े बच्चों को ही यह दवा दी जाए। विशेषकर दो साल से छोटे बच्चों को किसी भी स्थिति में यह दवा नहीं दी जाए। प्रदेश में भी इस एडवाइजरी की सख्ती से पालना के निर्देश दिए गए हैं।
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