अमरोहा/ हापुड़ , अक्टूबर 05 -- उत्तर प्रदेश में जातीय महिमा मंडन आधारित सम्मेलनों और रैलियों पर सरकार द्वारा पाबंदी लगा दी गई है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार गढ़गंगा - तिगरी धाम मेले में इस प्रथा को कैसे रोकती है।

उत्तरी भारत की सांस्कृतिक पहचान गढ़गंगा - तिगरी धाम स्नान मेला जिसमें प्रत्येक वर्ष देश-विदेश से लाखों लोग शामिल होते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी लोक परंपराएं जाति व गोत्रों की वजह से आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं। गांव की चौपालों और पंचायतों से लेकर गंगा तटीय मेलों तक में जातीय गौरव सम्मेलनों का बोलबाला रहता है।

ग्रामीण अंचल में जहां जातीय गौरव समृद्ध धरोहर का आधार माना जाता है। गंगा स्नान मेले में बहन-बेटियों के जाति गोत्र आधारित रिश्ते तय किए जाने का प्रचलन पिछले काफी समय से चला आ रहा है, इसके लिए ग्रामीण साल भर इंतजार करते हैं। ऐसे में जातीय आधारित सम्मेलनों पर पाबंदी के आदेशों का पालन मेला प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती माना जा रहा है।

कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान मेला सेल्फ मोटिवेटेड मेला माना जाता है। इसमें बिन चिठ्ठी बिन संदेश देश-विदेश के दूर-दूर से लोग खिंचे चले आते हैं। गंगा तट के दोनों ओर मीलों तक फैले डेरे - तंबुओं की नगरी के रूप में बसे इस मेले में लगभग 30-40 लाख़ श्रद्धालु हर साल यहां आते हैं। विभिन्न जातीय सम्मेलनों का मेले में बोलबाला रहता है। सरकार द्वारा हाल ही में ऐसे सम्मेलनों पर पाबंदी लगाई जा चुकी है। वहीं दूसरी ओर जातियों के लोगो, जाति लिखे निजी वाहनों तथा जातीय आधारित सम्मेलनों, जातीय पोस्टरों और होर्डिंग्स पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा है। ऐसे में 28 अक्टूबर से छह नवंबर तक चलने वाले गंगा स्नान मेले में बहुतायत में लगने वाले जातीय आधारित पांडालों और सम्मेलनों पर पाबंदी का असर कितना होगा यह देखना कम दिलचस्प नहीं होगा।

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