दार एस सलाम , अक्टूबर 11 -- तंजानिया के दार एस सलाम में एक बहुत की शांत क्रांति पनप रही है, जो बिना कुछ कहे बहुत कुछ बयां कर रही है। तंजानिया जॉय विमेन एंटरप्रेन्योरशिप फॉर द डेफ (जिसे स्थानीय रूप से फुवाविता के नाम से जाना जाता है) के नेतृत्व में देश भर की बधिर और दिव्यांग महिलाएं अपनी कहानियां नए सिरे से लिख रही हैं, कभी कुप्रथाओं और व्यवस्थागत बाधाओं से ये उपेक्षित महिलाएं अब सफल व्यवसाय चला रही हैं और परिवारों का भरण-पोषण कर रही हैं तथा समाज की योग्यता के प्रति दृष्टिकोण को नया रूप दे रही हैं।

यह सब अग्रणी अनेथ गेराना इसाया द्वारा स्थापित एक जमीनी स्तर के आंदोलन की देन है कि दार एस सलाम विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल करने वाली पहली बधिर महिला अनेथ गेराना इसाया द्वारा 2010 में स्थापित फुवाविता की उत्पति जरुरत के साथ हुयी थी।

सांकेतिक भाषा दुभाषिया रखने की कथित लागत के कारण नौकरी से वंचित होने के बाद एनेथ ने यह कदम उठाने का फैसला किया। अंतरराष्ट्रीय विकास में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही एनेथ ने हाल ही में चीन की न्यूज एजेंसी शिन्हुआ को दिए एक लिखित साक्षात्कार में बताया, "मुझे बताया गया कि मुझे नौकरी नहीं दी जा सकती क्योंकि संवाद करना बहुत मुश्किल होगा।" उन्होंने कहा, "उस पल ने मुझे कुछ ऐसा बनाने के लिए प्रेरित किया जो हमारी योग्यता और क्षमता को साबित कर सके।"उन्होंने बताया कि इसी दृढ़ संकल्प से एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन का जन्म हुआ जो अब तंजानिया में 3,500 से ज़्यादा विकलांग महिलाओं का समर्थन करता है।फुवाविता का मिशन स्पष्ट तौर पर बधिर और विकलांग महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक सम्मान प्राप्त करने के लिए आवश्यक साधन प्रदान करना है।

उन्होंने बताया कि मूंगफली का मक्खन उत्पादन, मुर्गी पालन, हस्तशिल्प और यहाँ तक कि शराब तथा मिर्च बनाने जैसे कौशलों में व्यावहारिक प्रशिक्षण के माध्यम से यह संगठन न केवल ज्ञान प्रदान करता है, बल्कि स्टार्टअप पूंजी और उपकरण भी प्रदान करता है। इसके कारण जो महिलाएँ कभी परिवार के सहयोग पर निर्भर रहती थीं, वे अब अपना खुद का व्यवसाय चला रही हैं और अपने समुदायों में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। इनमें 45 वर्षीय म्वाजुमा एली म्वाम्बो भी शामिल हैं, जो फुवाविता की सचिव हैं और अब मूंगफली के मक्खन और शराब का एक फलता-फूलता व्यवसाय चलाती हैं।

उन्होंने कहा, "फुवाविता से पहले मैं गुज़ारा करने के लिए दूसरों पर निर्भर थी। अब, मैं अपने परिवार का भरण-पोषण करती हूँ और भविष्य के लिए आशावान हूँ।" इस दौरान उन्होंने अपनी सहकर्मी और सह-प्रशिक्षक के बगल में बैठी म्वाम्बो ने एक सांकेतिक भाषा दुभाषिए के माध्यम से बात की। दोस्तों और सोशल मीडिया के माध्यम से इसके बारे में जानने के बाद वह 2016 में इस समूह में शामिल हुईं और तब से श्रवण बाधित अन्य महिलाओं को यह अनुभव देने में गहराई से शामिल रही हैं।

सुश्री म्वाम्बो ने कहा, "इन गतिविधियों के माध्यम से अब मैं अपने बच्चों की शिक्षा और परिवार की अन्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आय अर्जित कर पा रही हूँ।" उन्होंने कहा कि सफलताओं के बावजूद चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। संचार एक बड़ी बाधा बनी हुई है, खासकर जब सांकेतिक भाषा की सीमित समझ वाले समुदायों में उत्पादों का विपणन किया जाता है। सुश्री म्वाम्बो ने कहा, "अगर समाज के ज़्यादा लोग सांकेतिक भाषा सीख लें, तो कई बाधाएँ दूर हो जाएँगी।" उन्होंने बताया कि वह भविष्य को देखते हुए फुवाविता अपने परिचालन का विस्तार करने और अधिक दिव्यांग व्यक्तियों को रोज़गार देने के लिए एक बड़े पैमाने पर उत्पादन सुविधा स्थापित करने की योजना बना रहा है। उन्होंने कहा कि इस तरह की पहल न केवल आजीविका में सुधार लाएगी, बल्कि निर्भरता से जुड़ी रूढ़ियों को भी तोड़ेगी।

उन्होंने कहा, "बधिर हो या अन्य चुनौतियों का सामना कर रही महिलाओं के लिए फुवाविता एक ऐसी जगह है जहाँ आप कौशल सीख सकती हैं, उत्पाद बना सकती हैं और अपने परिवार तथा समाज में सार्थक योगदान दे सकती हैं।" उन्होंने विश्वविद्यालय के पहले सांकेतिक भाषा दुभाषिया की नियुक्ति के लिए सफलतापूर्वक प्रयास किया, जिससे भविष्य के बधिर छात्रों के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ। उन्होंने कहा, "सच्ची सफलता केवल प्रमाण पत्र प्राप्त करने तक नहीं है। यह आपके द्वारा छोड़ी गई छाप के बारे में है।" उन्होंने कहा कि आज फुवाविता डोडोमा, म्बेया, इरिंगा, कोस्ट और शिन्यांगा सहित कई क्षेत्रों में कार्यरत है। प्रशिक्षण, स्टार्टअप समर्थन और वकालत को मिलाकर इसका मॉडल, समावेशी विकास के एक खाके के रूप में देखा जा रहा है।

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