, Oct. 2 -- कोलकाता, 02 अक्टूबर (यूएनआई) दुर्गा पूजा के अंतिम दिन सुहागिन महिलाओं द्वारा सुख-समृद्धि की कामना के लिए की जाने वाली रस्म 'सिंदूर खेला' के बाद ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ बंगालियों का यह पाँच दिवसीय त्योहार आज संपन्न हो गया।

कड़ी सुरक्षा के बीच हज़ारों मूर्तियों का विसर्जन किया गया, जिनमें से ज़्यादातर हुगली नही की गयी।

लाल किनारी वाली पारंपरिक सफ़ेद साड़ियाँ पहने विवाहित हिंदू महिलाओं ने सिंदूर खेला में भाग लिया। यह एक प्रतीकात्मक रस्म है जिसमें महिलाएं देवी को सिंदूर और मिठाई अर्पित करती हैं, फिर एक-दूसरे के चेहरे पर सिंदूर लगाती हैं और वैवाहिक सुख की शुभकामनाएँ देती हैं।

घरेलू और सामुदायिक पूजा स्थलों से हज़ारों मूर्तियों को उनके निकटतम जलस्रोतों पर ले जाया गया, जहाँ कोलकाता नगर निगम (केएमसी) और विभिन्न नगर निकायों ने विसर्जन के लिए स्थान निर्धारित किए थे। सरकारी अधिकारियों ने यह भी सुनिश्चित किया कि जलाशयों को साफ़ रखने के लिए मूर्तियों के ढाँचे तुरंत हटा दिए जाएँ।

भक्तों ने मंत्रोच्चार किया, पारंपरिक ढोल (ढाक-ढोल) बजाए, शंख बजाए और मूर्तियों को पास की नदियों, तालाबों या अन्य जलाशयों में विसर्जित करने से पहले उलु धोनी (औपचारिक जयकार) की।

केएमसी ने 2 से 5 अक्टूबर के बीच मूर्तियों के विसर्जन के लिए हुगली नदी के किनारे अठारह घाट निर्धारित किए थे।

केएमसी ने शहर के कुछ सबसे व्यस्त घाटों पर 3,000 से अधिक मूर्तियों के विसर्जन के लिए सैकड़ों मजदूर, 128 लॉरी, 20 पेलोडर और छह हाइड्रा क्रेन तैनात किए हैं।

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के नगर निकायों ने भी सुचारू विसर्जन के लिए अपनी क्षमता के अनुसार इसी तरह की व्यवस्था की है।

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