नयी दिल्ली , नवंबर 10 -- उच्चतम न्यायालय ने तथाकथित "डिजिटल गिरफ्तारी" से जुड़े साइबर धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों पर सोमवार को गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि इस तरह के घोटालों के ज़रिए नागरिकों से लगभग 3,000 करोड़ रुपये की उगाही की गई है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने टिप्पणी की कि अदालत में बताए गए आंकड़े "चौंकाने वाले" हैं और न्यायपालिका इस मामले से "सख्ती से" निपटेगी।

पीठ ने इस खतरे पर अंकुश लगाने और भारत के भीतर और बाहर सक्रिय परिष्कृत घोटाला नेटवर्क से जनता की रक्षा के लिए एक मज़बूत तंत्र की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

अदालत सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें डिजिटल गिरफ्तारी घोटालों पर स्वतः संज्ञान कार्यवाही में हस्तक्षेप की माँग की गई थी।

एससीएओआरए ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि तथाकथित डिजिटल गिरफ्तारियाँ, जिनमें पीड़ितों को यह विश्वास दिलाने के लिए मजबूर किया जाता है कि वे जाँच के दायरे में हैं या आभासी पुलिस हिरासत में हैं, का कानून में कोई आधार नहीं है, जिसमें नव अधिनियमित भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) भी शामिल है।

याचिका में 72 वर्षीय एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड हेमंतिका वाही के मामले का उल्लेख किया गया है, जिनके साथ 3.29 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई थी। इसमें जाँच, वसूली तंत्र और अंतर-एजेंसी समन्वय में गंभीर कमियों को रेखांकित किया गया है।

एससीएओआरए ने अदालत से पुलिस बलों, बैंकों, साइबर सेल और वित्तीय मध्यस्थों के लिए एक राष्ट्रव्यापी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने का आग्रह किया है ताकि डिजिटल गिरफ्तारी धोखाधड़ी के मामलों को समान रूप से निपटाया जा सके।

पीठ ने केंद्र सरकार से जवाब माँगा है और संकेत दिया है कि इस मामले पर विस्तृत विचार किया जाएगा।

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