नई दिल्ली, सितंबर 30 -- तमिलनाडु सरकार ने सेवारत शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अनिवार्य करने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ मंगलवार को पुनर्विचार याचिका दायर की है।

हालांकि, यदि कोई ऐसा शिक्षक (जिसकी सेवा अवधि पाँच वर्ष से कम शेष है) पदोन्नति की इच्छा रखता है, तो उसे टीईटी उत्तीर्ण किए बिना पात्र नहीं माना जाएगा।

शीर्ष अदालत ने एक सितंबर 2025 को अपने फैसले में शिक्षकों के लिए टीईटी उत्तीर्ण होना अनिवार्य कर दिया था। अदालत ने अपने निर्देशों में कहा था कि जिन शिक्षकों की सेवा अवधि आज की तारीख तक पाँच वर्ष से कम शेष है, वे बिना टीईटी उत्तीर्ण किए सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करने तक सेवा में बने रह सकते हैं।

अधिवक्ता सबरीश सुब्रमण्यन द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि अगर इस फैसले को लागू किया जाता है, तो इससे होने वाली कठिनाई केवल शिक्षक समुदाय तक ही सीमित नहीं होगी।

याचिका में कहा गया है, "अगर इन निर्देशों (टीईटी की अनिवार्यता) को लागू किया जाता है, तो पूरी स्कूल व्यवस्था ध्वस्त होने की आशंका है, जिसमें शिक्षकों की सामूहिक अयोग्यता और लाखों बच्चों को कक्षा में शिक्षा से वंचित होना पड़ेगा। यह संविधान के अनुच्छेद 21ए के साथ सीधा टकराव पैदा करता है, जो शिक्षा के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है।"याचिका में कहा गया है कि शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और शिक्षा के अधिकार की रक्षा के बीच संतुलन भविष्योन्मुखी उपायों द्वारा बनाए रखा जाना चाहिए, न कि लगभग पूरे शिक्षक वर्ग को पूर्वव्यापी प्रभाव (बिना टीईटी अनिवार्यता) से बाहर करके।

पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि अकेले तमिलनाडु में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में 4,49,850 शिक्षक कार्यरत हैं, जिनमें से 3,90,458 टीईटी उत्तीर्ण नहीं हैं।

याचिका में यह भी कहा गया है कि यदि शिक्षण गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य को वैध भी मान लिया जाए, तो भी 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को अयोग्य ठहराए जाने के डर से टीईटी पास करने के लिए बाध्य करना स्पष्ट रूप से अनुचित है।

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