रांची , नवम्बर 12 -- झारखंड के हजारीबाग़ की सुगिया देवी ने सोहराय पेंटिंग को नई ऊँचाईयों पर पहुंचाया है।
यह पारंपरिक कला, जो हजारों साल पुरानी है, मिट्टी की दीवारों पर जीवन, प्रकृति और त्योहारों का सुंदर चित्रण करती है। सोहराय कला झारखंड के कुर्मी, संथाल, मुंडा और उरांव जैसी आदिवासी जनजातियों की महिलाओं के बीच पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित और संवर्धित होती आई है।
सुगिया देवी ने बताया कि यह कला अपनी मां से सीखी। बचपन में मां के साथ गुफाओं में जाकर मिट्टी से रंग बनाना और दीवारों पर चित्र बनाना उनकी शिक्षा का हिस्सा था। आज वह न केवल खुद पेंटिंग करती हैं, बल्कि सैकड़ों महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का काम भी कर रही हैं। उनकी इस कला ने राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान पाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सोहराय कलाकृति के प्रचार-प्रसार में उनके योगदान को सराहा है।
सुगिया ने कहा कि सोहराय पेंटिंग केवल चित्रकारी नहीं है, बल्कि जीवन का उत्सव है। फसल कटाई के बाद, हरी-भरी धरती पर महिलाएं मिट्टी, गोबर और प्राकृतिक रंगों से देवी-देवताओं और पशुओं की आकृतियां बनायी जाती हैं।
सुगिया देवी ने इस कला को आधुनिक साड़ियों, कपड़ों और सजावटी वस्तुओं तक पहुंचाया है, जिससे यह लोककला नए बाजारों और मंचों पर चमकने लगी है।
झारखंड स्थापना दिवस पर रांची की दीवारें सुगिया देवी और उनकी टीम की कला से सजी हैं, जो राज्य की सांस्कृतिक आत्मा को दर्शाती हैं। हालांकि, आधुनिकता की तेज़ रफ्तार के बीच सोहराय कला खतरे में है, लेकिन सुगिया देवी जैसी कलाकार इसे बचाने और नई पीढ़ी तक पहुंचाने में जुटी हैं। उनकी कला अब विश्व के महानगरों लंदन, न्यूयॉर्क और टोक्यो तक अपनी छाप छोड़ चुकी है।
सुगिया देवी ने कहती हैं कि परंपराएं तब तक जीवित रहती हैं जब तक उन्हें सहेजा और जीया जाता है। उनकी मेहनत और समर्पण ने झारखंड की मिट्टी से जुड़ी इस कला को एक नई पहचान दी है, जो सिर्फ झारखंड नहीं, पूरे विश्व की सांस्कृतिक धरोहर बन रही है।
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