नयी दिल्ली , नवंबर 06 -- केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने गुरुवार को कहा कि भारत आर्थिक प्रगति को पर्यावरणीय स्थिरता से जोड़ते हुए एक वैश्विक पथप्रदर्शक के रूप में उभर रहा है।

उन्होंने जन-नेतृत्व वाली जलवायु कार्रवाई, नीति-प्रौद्योगिकी-युवा तालमेल और सामूहिक क्षेत्रीय सहयोग पर ज़ोर दिया।

केंद्रीय मंत्री श्री सिंह ने यह बात यहां जामिया मिलिया इस्लामिया एशियाई भूगोल सम्मेलन (एसीजी 2025) के उद्घाटन के अवसर पर अपने संबोधन में कही। उन्होंने इस सम्मेलन को समय के अनुकूल बताते हुये कहा कि जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण और सतत संसाधन प्रबंधन तीनों आपस में जुड़े मुद्दे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत 'पर्यावरण के लिए जीवनशैली (एलआईएफई)' और 2070 तक 'नेट ज़ीरो' (शुद्ध शून्य) लक्ष्य के माध्यम से प्रकृति के अनुरूप जीवनशैली को प्रोत्साहित कर रहा है।

श्री सिंह ने सम्मेलन के अयोजन के लिये जामिया मिलिया इस्लामिया की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के मंच वैश्विक विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और युवाओं को एकजुट कर ज्ञान, नीति और व्यवहारिक स्तर पर बदलाव को प्रेरित करते हैं। उन्होंने कहा कि एशिया वैश्विक औद्योगिक और आर्थिक परिवर्तन के केंद्र में है, लेकिन इसके साथ ही यह दुनिया के आधे से अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का स्रोत भी है।

श्री सिंह ने आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट का हवाला देते हुए चेतावनी दी कि अगर उत्सर्जन नहीं घटा तो यह क्षेत्र लू, बाढ़ और जल संकट जैसी चरम मौसम घटनाओं के प्रति और अधिक संवेदनशील हो जाएगा।

श्री सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि दक्षिण एशिया में 75 करोड़ से ज़्यादा लोग जलवायु संकट का सामना कर रहे हैं। वहीं दिल्ली, ढाका, बैंकाक और मनीला जैसे महानगर 2050 तक सबसे संवेदनशील शहरों में शामिल हो जायेंगे। उन्होंने कहा कि अनियोजित शहरीकरण, भूजल में गिरावट, बाढ़ के मैदानों पर अतिक्रमण और बढ़ता प्रदूषण इन चुनौतियों को और गंभीर बना रहे हैं।

उन्होंने विकासशील देशों में लगभग 80 प्रतिशत अपशिष्ट जल बिना शोधन के छोड़े जाने और भारत में हर साल 5.5 करोड़ टन ठोस कचरा उत्पन्न होने पर चिंता जतायी। जो पांच प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है। उन्होंने अपशिष्ट को संसाधन में बदलने वाली तकनीकों और चक्रीय अर्थव्यवस्था को भविष्य के लिए अनिवार्य बताया। देहरादून में प्रयुक्त खाद्य तेल के पुनर्चक्रण जैसी सफल पहल का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसी स्थानीय योजनाएं पर्यावरण संरक्षण के साथ सामुदायिक स्तर पर आय के अवसर भी सृजित करती हैं।

डॉ. सिंह ने कहा कि कोई भी सरकारी पहल जनभागीदारी के बिना सफल नहीं हो सकती। उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन की सफलता का श्रेय नागरिकों के व्यवहार में बदलाव को दिया। उन्होंने कहा कि भारत की सतत विकास प्रतिबद्धता मजबूत नीतिगत ढांचे जैसे राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (एनपीसीसी), स्मार्ट सिटी मिशन, अमृत और स्वच्छ भारत मिशन में झलकती है। उन्होंने कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन, बायो-इकोनॉमी, सर्कुलर इकोनॉमी और डिजिटल इंडिया जैसी पहल भारत के आर्थिक विकास और पारिस्थितिक संतुलन के बीच सामंजस्य को दर्शाती हैं। इसरो के पृथ्वी अवलोकन मिशन और भू-स्थानिक नीति 2022 जैसी पहलों ने जलवायु लचीलेपन के लिए योजना और निगरानी को सशक्त बनाया है।

श्री सिंह ने शिक्षा और युवाओं को स्थायी भविष्य की कुंजी बताते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 छात्रों को बहुआयामी सोच और पर्यावरणीय समझ विकसित करने का अवसर देती है। उन्होंने कहा, "युवाओं को स्थिरता के ज्ञान और डिजिटल उपकरणों से सशक्त बनाना हमारे सामूहिक भविष्य में सबसे बड़ा निवेश है।"श्री सिंह ने भारत की 70 प्रतिशत से अधिक युवा आबादी का ज़िक्र करते हुए कहा कि जलवायु कार्रवाई की भाषा युवाओं की भाषा होनी चाहिए - डिजिटल, रचनात्मक और प्रेरक। उन्होंने सोशल मीडिया अभियानों और छोटे डिजिटल संदेशों के माध्यम से सतत जीवनशैली को लोकप्रिय बनाने का आह्वान किया।

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