कोटा , नवम्बर 13 -- राजस्थान के शिक्षा एवं पंचायती राज मंत्री मदन दिलावर ने वर्षा के पानी को एकत्र कर भूजल रिचार्ज बढ़ाने के लिए जल ग्रहण विकास के कार्य करने की जरुरत बताते हुए कहा है कि जल स्रोतों के पुनरुद्धार से भूजल स्तर बढ़ेगा और भूमि में नमी से हरियाली बढ़ेगी।
श्री दिलावर गुरुवार को खैराबाद पंचायत समिति के उण्डवा गांव में वाटरशेड महोत्सव के राज्य स्तरीय समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रदेश में कई स्थानों पर भूजल स्तर काफी नीचे पहुंच गया है, भूमि में नमी नहीं होने से वनस्पतियां उत्पादित नहीं हो रही हैं और मिट्टी के निरंतर कटाव से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है। इन परिस्थितियों को देखते हुए हमें बारिश के पानी को एकत्र कर भूजल रिचार्ज बढ़ाने के लिए जल ग्रहण विकास के कार्य करने होंगे।
उन्होंने कहा कि पेड़-पौधे लगाकर मिट्टी का कटाव रोकने एवं नदियों, तालाबों तथा परम्परागत जल स्त्रोतों के पुनरुद्धार के कार्य मिशन वाटरशेड के तहत करने होंगे। इन्हीं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आज से उण्डवा में राज्य स्तरीय वाटरशेड महोत्सव एवं मिशन जल ग्रहण पुनरुत्थान कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में सभी 159 जल ग्रहण विकास परियोजनाओं में इसी प्रकार के कार्यक्रम आयोजित कर आमजन में जागरूकता पैदा की जाएगी और वाटर शेड का महत्व समझाया जाएगा। उन्होंने कहा कि जल स्रोतों के पुनरुद्धार से भूजल स्तर बढ़ेगा, भूमि में नमी से हरियाली बढ़ेगी और जानवरों के लिए चारा उत्पादित होगा। इससे प्रदेश की तस्वीर भी बदलेगी। उन्होंने सभी का आह्वान किया कि मिशन जल ग्रहण पुनरुत्थान एवं वाटर शेड महोत्सव में बढ़ चढ़कर भाग लें।
श्री दिलावर ने कहा कि विलायती बबूल जूलीफ्लोरा ने प्रदेश में 500 प्रकार की वनस्पतियों को समाप्त कर दिया है, गहरी जड़ें होने के कारण विलायती बबूल प्रतिदिन 30 लीटर पानी सोंखता है और इससे भूजल स्तर काफी तेजी से नीचे जाता है। उन्होंने कहा कि इससे निकलने वाली जहरीली गैसों से बीमारियां फैलती हैं एवं मिट्टी भी अनुपजाऊ हो जाती है। देशी वनस्पतियों को खा रहे इस राक्षस को पूरे प्रदेश से हटाने के लिए विलायती बबूल हटाओ-चारागाह बचाओ अभियान शुरू किया गया है। उन्होंने कहा कि पंचायतें अपने कोष से पैसा खर्च कर जूलीफ्लोरा को जड़ से उखाड़कर नष्ट करें। उन्होंने कहा कि जहां विलायती बबूल है वहां से उसे समूल नष्ट कर उन जगहों पर चरागाहों का विकास किया जाएगा।
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