श्रीनगर , अक्टूबर 01 -- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय उपराज्यपाल की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों की एक विशेष पीठ का गठन करने वाला है, जिसमें 25 पुस्तकों को जब्त घोषित किया गया है।

श्री सिन्हा ने इस अधिसूचना के जरिये 25 पुस्तकों के प्रकाशन पर रोक लगा दी थी। जम्मू-कश्मीर गृह विभाग ने पांंच अगस्त को अधिसूचना जारी कर कश्मीर पर 25 पुस्तकों के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया, जिनमें अरुंधति रॉय और ए जी नूरानी जैसे लेखकों की पुस्तकें भी शामिल हैं। अधिसूचना में इन पुस्तकों पर 'अलगाववाद' का प्रचार करने का आरोप लगाया गया है। जिन पुस्तकों के प्रकाशन पर रोक लगायी गयी है, उनमें प्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ नूरानी की द कश्मीर डिस्प्यूट 1947-2012, सुमंत्र बोस की कश्मीर एट द क्रॉसरोड्स एंड कॉन्टेस्टेड लैंड्स, डेविड देवदास की इन सर्च ऑफ ए फ्यूचर: द कश्मीर स्टोरी, श्रीमती रॉय की आजादी और पत्रकार अनुराधा भसीन की ए डिसमेंटल्ड स्टेट: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ कश्मीर आफ्टर आर्टिकल 370 शामिल है।

इस मामले का उल्लेख मंगलवार मुख्य न्यायाधीश के समक्ष अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने किया। यह याचिका भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 की धारा 99(2) के तहत सेवानिवृत्त एयर वाइस मार्शल कपिल काक, लेखक डॉ. सुमंत्र बोस (जिनकी दो पुस्तकें प्रतिबंधित पुस्तकों में शामिल हैं), डॉ. राधा कुमार और पूर्व नौकरशाह वजाहत हबीबुल्लाह द्वारा दायर की गयी है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि बीएनएसएस के प्रावधानों के अनुरूप विशेष पीठ के गठन के आदेश जल्द से जल्द पारित किए जाएँगे। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि 25 पुस्तकों की सर्वसम्मति मुख्यतः कश्मीर के सामाजिक-राजनीतिक जीवन और घाटी के सांस्कृतिक इतिहास में गुंथे असंख्य राजनीतिक संघर्षों से संबंधित है। याचिका में कहा गया है, "ये पुस्तकें ( जिनमें से अधिकांश अकादमिक कृतियाँ हैं) इतिहास के क्षेत्र में अभिलेखों का काम करती हैं। विवादित आदेश में उल्लिखित 25 पुस्तकों के मनमानी, व्यापक और अतार्किक प्रकाशन पर रोक से वह व्यथित हैं। याचिकाकर्ताओं ने धारा 99 बीएनएसएस के तहत प्रदान किए गए विशिष्ट उपाय का आह्वान किया है।"याचिका में कहा गया है कि यह आदेश इस निष्कर्ष पर पहुँचने का कोई आधार या तर्क प्रदान नहीं करता कि जिन 25 पुस्तकों की पहचान की गई है वे जम्मू-कश्मीर में झूठे आख्यान और अलगाववाद का प्रचार करती हैं और उनके प्रकाशन पर रोक लगायी जानी चाहिए। इसमें संबंधित पुस्तकों के किसी भी अंश का उल्लेख नहीं है जिससे यह पता चले कि उनमें झूठे आख्यान और अलगाववाद का प्रचार क्यों किया गया है। याचिका में कहा गया है, "केवल वैधानिक प्रावधानों को पुनः प्रस्तुत करने या वैधानिक प्रावधानों की विषयवस्तु का संदर्भ देने वाले व्यापक बयान, बिना यह दर्शाए कि पुस्तकों की विषयवस्तु से उनका अनुमान कैसे लगाया गया है, बीएनएसएस के तहत परिकल्पित 'तर्कसंगत आदेश' की सीमा को पूरा नहीं करते।" याचिका में तर्क दिया गया है कि विवादित आदेश भाषण और अभिव्यक्ति की मौलिक स्वतंत्रता और जानने के अधिकार पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध है। इस संबंध में विभिन्न निर्णयों में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित आनुपातिकता परीक्षण के मानकों को भी पूरा करना चाहिए।

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