कोंडागांव , नवम्बर 08 -- छत्तीसगढ के कोंडागांव में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप अब स्कूलों में केवल किताबें नहीं, बल्कि जीवन कौशल और परंपरागत ज्ञान भी पढ़ाया जा रहा है। इसी क्रम में जिले के शासकीय प्राथमिक शाला खुटपारा सोनाबाल में हर सप्ताह एक दिन "बैगलैस डे" मनाया जा रहा है, जहाँ बच्चों को पारंपरिक कला, हस्तशिल्प और सांस्कृतिक गतिविधियां सीखायी जाती है।
कोंडागांव में मर्दापाल स्थित तहसील विकासखंड संकुल सोनाबाल स्थित इस विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में बच्चों ने "कौशल विकास एवं सामाजिक-सांस्कृतिक आत्मनिर्भर भारत" थीम पर आधारित रोचक कार्यशाला में भाग लिया। इस आयोजन में शासकीय प्राथमिक शाला कुम्हारपारा सोनाबाल के विद्यार्थी भी शामिल हुए और स्थानीय कला-परंपरा से परिचित हुए।
विद्यालय के प्रधानाध्यापक के प्रयासों से इस कार्यशाला में विशेष तौर पर आमंत्रित अनिल विश्वकर्मा (जो दिल्ली सरकार द्वारा सम्मानित "कमलादेवी चट्टोपाध्याय राष्ट्रीय जूनियर हस्तशिल्प पुरस्कार" विजेता हैं) ने बच्चों को प्रसिद्ध तुमा हस्तशिल्प (कद्दू से बनी उपयोगी वस्तुएँ) की निर्माण विधियाँ सिखाईं और इसके सांस्कृतिक महत्व के बारे में बताया।
श्री विश्वकर्मा ने बच्चों के सामने तुमा कला का जीवंत प्रदर्शन किया और उन्हें समझाया कि यह परंपरागत कला कैसे आत्मनिर्भरता, पर्यावरण संरक्षण और रचनात्मकता से जुड़ी हुई है। बच्चे बड़े उत्साह के साथ इस कला को सीखते नजर आए।
प्रधानाध्यापक ने बताया कि "बैगलैस डे" का उद्देश्य बच्चों को केवल किताबों के ज्ञान तक सीमित न रखकर व्यावहारिक अनुभव और स्थानीय संस्कृति से जोड़ना है। यह पहल बच्चों में रचनात्मकता, आत्मविश्वास और स्वावलंबन की भावना विकसित करने में मददगार साबित हो रही है।
इस नवाचार से ग्रामीण स्कूलों में शिक्षा को एक नई दिशा मिली है, जहाँ विद्यार्थी अब केवल पढ़ाई ही नहीं, बल्कि अपने क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत और हस्तशिल्प परंपरा को भी आत्मसात कर रहे हैं।
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