नयी दिल्ली , नवंबर 19 -- केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री मनोहर लाल ने यहां बुधवार को कहा कि स्वच्छता का वास्तविक आकलन किसी के घर की साफ-सफाई से नहीं, बल्कि शौचालय की स्थिति से होता है। उन्होंने स्वच्छता के संदर्भ में अपशिष्ट जल उपचार, पुन: उपयोग, तथा स्वच्छ शौचालयों के निर्माण के साथ-साथ लोगों में व्यावहारिक बदलाव लाने को आवश्यक बताया।
उन्होंने यह बात विश्व शौचालय दिवस 2025 पर आयोजित विश्व शौचालय शिखर सम्मेलन में कही। इस तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन का उद्घाटन श्री लाल और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने किया। तीन दिवसीय इस सम्मेलन में 25 देशों के प्रतिनिधियों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, उद्योग निकायों, विशेषज्ञों और नवप्रवर्तकों ने भाग लिया।
श्री लाल ने अपने संबोधन में कहा कि भारत सहित दुनिया में स्वच्छ और बेहतर शौचालय प्रणालियां स्थापित की जा रही हैं, जिससे न केवल स्वास्थ्य सुधरेगा बल्कि पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक गरिमा भी मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि स्वच्छता का वास्तविक आकलन किसी के घर की साफ-सफाई से नहीं, बल्कि शौचालय की स्थिति से होता है। उन्होंने अपशिष्ट जल उपचार, पुन: उपयोग, तथा स्वच्छ शौचालयों के निर्माण के साथ-साथ लोगों में व्यवहारिक बदलाव लाने को आवश्यक बताया। उन्होंने बच्चों में प्रारंभिक स्वच्छता आदतों के विकास और स्वच्छ भारत मिशन-शहरी के तहत अपशिष्ट से धन बनाने जैसे मॉडलों के महत्व पर भी बल दिया।
इस अवसर पर श्री पाटिल ने ग्रामीण भारत में शौचालय निर्माण के दूरगामी प्रभावों का विशेष रूप से उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में अब तक 12 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए जा चुके हैं, जिन्होंने महिलाओं की सुरक्षा, गरिमा और दैनिक जीवन को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। इससे न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ा है, बल्कि स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। उन्होंने यह भी कहा कि स्वच्छता और स्वच्छ जल तक पहुंच के कारण, दस्त से होने वाली वार्षिक मौतों में भारी गिरावट आई है और लगभग तीन लाख बच्चों की जान बचाई जा सकी है। उनका कहना था कि स्वच्छता का आधार शौचालय की उपलब्धता है, जो स्वास्थ्य और सामाजिक सम्मान दोनों के लिए जरूरी है।
इस शिखर सम्मेलन में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने दो नए अभियान-'शौचालय पास है' और 'मैं साफ़ ही अच्छा हूँ'-की शुरुआत की। इन अभियानों का उद्देश्य लोगों में जिम्मेदारी से शौचालय उपयोग और स्वच्छता आदतों को बढ़ावा देना है। इस वर्ष का विषय-"स्वच्छता: गरिमा और ग्रह के लिए सामूहिक उत्तरदायित्व"-भारत की व्यापक सोच को दर्शाता है, जिसमें स्वच्छता को स्वास्थ्य, सम्मान और पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा गया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान के अनुरूप भारत ने स्वच्छता सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने में उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है। 2014 में प्रारंभ हुए स्वच्छ भारत मिशन के तहत 2019 में देश को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया, जो दुनिया के लिए एक उदाहरण बन गया। इस उपलब्धि ने महिलाओं और छात्राओं को सुरक्षित वातावरण प्रदान किया, जिससे उनकी शिक्षा और समाज में भागीदारी बढ़ी।
तेजी से बढ़ते शहरीकरण के बीच स्वच्छता संबंधी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (एसबीएम-यू) 2.0 शुरू किया गया, जिसमें ओडीएफ (खुले शौच में मुक्त) से आगे बढ़कर ओडीएफ प्लस, ओडीएफ प्लस प्लस और सुरक्षित स्वच्छता प्राप्त करने पर ध्यान दिया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ की 2024 संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो वर्षों में 5.5 करोड़ शहरी निवासियों को सुरक्षित और बेहतर स्वच्छता सुविधायें मिलीं हैं। इससे बाल मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है।
शहरी स्वच्छता को बेहतर बनाने में स्टार्टअप्स की भी महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है। इसके लिए 'स्वच्छता स्टार्टअप चैलेंज' और 'शौचालय डिज़ाइन चैलेंज' शुरू किए गए, जो नई तकनीक, स्मार्ट डिज़ाइन और व्यवहारिक समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं। मंत्रालय ने एचयूएल और सुलभ इंटरनेशनल के साथ महत्वपूर्ण समझौते भी किए हैं, जिनके तहत पीपीपी मॉडल में सामुदायिक शौचालयों के निर्माण और उनके कुशल रखरखाव को बढ़ावा मिलेगा।
एसबीएम-यू 2.0 के तहत "आकांक्षी शौचालय" की अवधारणा भी तेजी से आगे बढ़ रही है। देशभर में 29,000 आकांक्षी शौचालय सीटों को मंजूरी दी जा चुकी है, जिनमें स्मार्ट सुविधाएँ, समावेशी डिजाइन, लिंग-तटस्थ व्यवस्था, बच्चों के अनुकूल ढांचा और पर्यावरण-अनुकूल तकनीकें शामिल होंगी। इसका उद्देश्य सार्वजनिक शौचालयों के उपयोगकर्ता अनुभव को बेहतर बनाना और उन्हें स्वच्छ, सुरक्षित तथा टिकाऊ बनाना है।
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